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________________ २९६ पाण्डवपुराणम् वणिग्वधु न भेतव्यं दिवसे समुपस्थिते । सूनोरद्य करिष्याम्युपायं त्वत्पुत्ररक्षणे ॥१०४ दास्यामि मत्सुतं भूतबल्यर्थ रूपभासुरम् । मन्दिरे नन्दनस्तेऽद्यानन्दानन्दतु निश्चितम्॥१०५ इत्युक्त्वा सा गता कुन्ती यत्रास्ते पावनिः सुतः। समुत्थाय स तां वीक्ष्य ननाम तत्पदाम्बुजम्।। क्षणं स्थित्वा स्थिरा साप्यगदीद्गद्गदया गिरा। बकवृत्तं च निःशेषं निःशेषस्वान्तहारिणी॥ पावने श्रृणु शान्तः समस्या एकोऽस्ति सत्सुतः। यातुधानाय सल्लोकैर्दास्यते बलये द्य सः॥ दुःखिनीयं सदादुःखा सुतवित्तविवर्जिता । हते सुते वराकी च किं करिष्यति सर्वदा॥१०९ अद्य रात्रौ स्थिता यूयमस्या वेश्मनि विस्मिताः। प्राघुर्ण्यमनया नीता विनीता वसनोदकैः ॥ परोपकारिणो यूयं परोपकृतिसिद्धये । अस्या जीवन्सुतो गेहे यथा तिष्ठेत्तथा कुरु ॥१११ ।। मनुष्यराक्षसश्चायं लोकानचि निरन्तरम् । निर्दयो वारणीयस्तु त्वया कम्रकृपात्मना ॥११२ कुन्त्युक्तं पावनिः श्रुत्वा जगौ कार्यकदम्बकत् । अम्बैतत्कि त्वया प्रोक्तं यतस्त्वत्सेवकोऽस्म्यहम् ॥११३ त्वद्वचःपालनायाशु यातुधानबलिकृते । तद्वासरं विनाद्याहं संयास्यामि च सत्वरम् ॥११४ मैं मेरे पुत्रसे आज उपाय योजना करूंगी । मैं उस बकराक्षसको बलिदान देनेके लिये मेरा रूपसे तेजस्वी पुत्र दूंगी। आजसे तेरा पुत्र तेरे मन्दिरमें निश्चयसे आनन्दपूर्वक रहेगा " ऐसा बोलकर जहां उसका भीमपुत्र था, वहां वह गई। माताको आई हुई देखकर भीमने ऊठकर उसके चरणकमलोंकी वन्दना की। क्षणतक वह मौनसे रही अनंतर संपूर्ण लोगोंके मनको हरण करनेवाली कुन्ती गद्गदवाणसे बकराक्षसका संपूर्ण वृत्तान्त कहने लगी ॥ १०३-१०७ ॥ “हे भीम शान्त होकर सुन। इस वैश्यपत्नीको एक सज्जन लडका है। आज वह यहांके सज्जनलोगों द्वारा बलिके लिये दिया जानेवाला है। यह दुःखिनी वैश्यपनी पुत्र और धनसे रहित होगी और हमेशा दुःखी हो जावेगी। इसका पुत्र मर जानेपर यह दीन स्त्री सर्वदा कैसे जियेगी ? आज रात्रीमें तुम लोग इसके घरमें ठहरे हो, नम्रतासे इसने तुम्हारी पाहुनगत की है। वस्त्र जल देकर तुम्हारा इसने सत्कार किया है। हे भीम, तुम लोग परोपकरी हो । परोपकारकी सिद्धिके लिये इसका पुत्र घरमें जैसा जीकर रहेगा वैसा प्रयत्न करो। यहां बकराजा मनुष्यराक्षस है। यह लोगोंको दररोज खाता है। सुंदर दयाको धारण करनेवाले तेरे द्वारा यह निर्दय बक, ऐसे नरभक्षणात्मक हिंस्र कार्यसे हटाया जाना चाहिये" ॥१०८-११२॥ [बकराक्षस मर्दन] कुन्तीका भाषण सुनकर अनेक कार्य करनेवाला भीम माताको कहने लगा कि माता यह तुमने क्या कहा अर्थात् जो तुमने कहा वह कुछ बडा और कठिन कार्य नहीं है। यह तो मैं शीघ्र करूंगा। हे माता मैं तेरा आज्ञाधारक सेवक हूं तेरे वचनके पालनार्थ मैं राक्षसबलिके लिये वैश्यपुत्रका दिन नहीं होता तो भी आज मैं सत्वर जानेवाला हूं। उत्तम न्यायकी बातें जाननेवाले, वार्ताके स्वामी ऐसे वे माता पुत्र इस प्रकारसे उत्तम भाषण कर रहे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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