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________________ २९१ चतुर्दशं पर्व एह्येहि चात्र संत्रस्त बलं दर्शय दोर्भवम् । भावत्कं येन दृप्तेन त्वया संत्रासिता नराः॥४८ इत्याकर्ण्य महाघोषं हादिनीघोषसंनिभम् । दधाव पावनि भीमो निशाचौरो निशाचरः॥ कुर्वन्किलकिलारावं कालास्यः कालदर्शनः। पिशाचः पावनि यो मुत्तस्थे क्रोधनिष्ठुरः।। भीमोऽभाणीपिशाचेश संगरे संगरोद्यत । सजो भव विलम्बेन त्वया संत्रासिता नराः॥५१ इत्युक्त्वा तौ समालग्नौ योद्धं संक्रुद्धमानसौ। धरन्तौ च महाधाष्टयं शब्दसंभिन्नपर्वतौ ॥५२ जघ्नतुर्धनघातेन बाहुजेन परस्परम् । वज्रमुष्टिप्रपातेन चूर्णयन्तौ शिलामिव ॥५३ चरचरणघातेन मारयन्ता मदोद्धतौ । क्षेपिष्ठौ क्षिप्रमावीक्ष्य क्षिपन्तौ सुक्षितौ क्षणात् ॥५४ युयुधाते सुयोद्धारौ भीमौ भीमनिशाचरौ। तावता खचरो योद्धमुत्तस्थे च हिडिम्बया॥५५ विडम्बयितुमारेभे हिडिम्बां तां स मण्डिताम् । आह खेचरि कोज्न्यस्त्वां मय्यहो परिणेष्यति।। तदोर्धारणधीरत्वं यावद्धत्ते खगेश्वरः। तावजघान तं भीमो मुष्ट्या दक्षिणदोर्भुवा ॥५७ होकर तूने अनेक मनुष्योंको कष्ट दिया है। इस प्रकारका वज्रघोषके समान महाघोष-भीमकी बडी गर्जना सुनकर रात्रीमें चोरके समान भ्रमण करनेवाला वह भयंकर पिशाच भीमके ऊपर चढकर आया। जिसका रूप काला है, अथवा यमके समान जिसका दशन है, जिसका मुख काला है, जो कोपसे निष्ठुर है, ऐसा वह पिशाच किलकिल शब्द करता हुआ लढनेके लिये उद्युक्त हुआ ॥ ४६-५०॥ [घुटुकजन्म ] भीमने कहा, कि “ हे पिशाचपते, युद्धके लिये उद्युक्त तू युद्धमें अर्थात् युद्धके लिये तैयार हो। दीर्घ कालसे तूने अनक मनुष्योंको दुःख दिया है " ऐसा बोलकर वे दोनोंभी क्रोधसे व्याप्त होगये। उन दोनोंमें अत्यंत उद्धतपना उत्पन्न हुआ। जब वे जोरसे बोलने लगे तब पर्वतोंसे प्रतिध्वनि उत्पन्न होने लगे। वे दोनों युद्ध करने लगे। जैसे वज्रकी मुष्टिके आघातसे शिला चूर्ण विचूर्ण की जाती है वैसे वे दोनों अपने बाहुके कठिण आघातसे अन्योन्यको खूब पीटने लगे। भीम और पिशाच दोनों मदसे उद्धत हुए थे। चंचल चरणोंके आघातसे वे अन्योन्यको मारते थे, और अन्योन्यको देखकर जमीनपर जल्दी जल्दी जोरसे चतुरतापूर्वक अपने चरणोंका आघात करते थे। भयंकर ऐसे भीम और पिशाच दोनोंभी चतुरयोद्धा थे । वे आपसमें लडने लगे। इतनेमें वह विद्याधर हिडिम्बाके साथ युद्ध करनेके लिये उद्युक्त हुआ। अलंकृत हुई हिडम्बाको उसने पीडा देनेका आरंभ किया। वह उससे बोला कि 'हे विद्याधरि , ऐसा कौन है जो मेरे यहां विद्यमान होनेपर भी तुझसे विवाह करेगा ? ऐसा बोल कर विद्याधर हिडिंबाका हाथ पकडनेका साहस कर रहा था; इतने में भीमने दाहिने हाथकी मुट्ठीसे उसके ऊपर आघात किया । तथा भीमने पुनः क्रोधसे पिशाचके पीठपर आघात किया, जिससे वह दुष्ट जमीनपर गिर पडा । तोभी पुनः वह उठ गया। तब विद्याधरने पिशाचको वहांसे हठाया और भीमके सामने युद्धोधत होकर उसको कष्ट देनेके लिये तयार होकर लढाई शुरू की। पिशाचका पैर खींचकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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