SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 316
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वादशं पर्व २६१ कर्मण्युपस्थिते कोत्र बली कैवर्तहस्ततः । च्युतो जाले गतो मीनस्तच्च्युतो गलितो विना॥ इत्यातयं नृपो ज्येष्ठोऽलोकयद्धीमसन्मुखम् । इति कर्तव्यतामूढो व्यूहगूढो वृषात्मकः ॥ नृपोऽभणद्भयाक्रान्तो विपुलोदर सोदर । उदीर्य दरनिर्णाशे वचो वीर त्वयाधुना ॥२७७ अन्यच्च चिन्तितं कार्यमन्यच्च समुपस्थितम् । अनिष्टं राजकन्येष्टो विप्रो वा व्याघ्रभक्षितः ॥ मध्यविनविनाशाय कोऽप्युपायो विधीयते । न मे स्फुरति शान्त्यै स चिन्तयाधीहि नश्यति भीमोऽभाणीद्भयातीतो भृकुटीकुटिलाननः । नृपावसरमारेक्य कृतं कार्य सुबुद्धिना ॥२८० एको हि निरवद्योञोपायोऽपायविवर्जितः । पोस्फुरीति मम स्फूर्तिकीर्तिसंपत्तिदायकः ॥ येनोपायेन नाकीर्तिर्नापमानो न निन्धता । न हानिः स प्रकर्तव्यः सर्वकार्यप्रसिद्धये ।।२८२ स्फुरज्जरज्ज्वराक्रान्तः कैवर्तो विकृताकृतिः । दरिद्रो दुर्भगो दीनो दुःखदग्धो दयातिगः ।। इमं हत्वा बलिं दत्त्वा तोषयित्वा च तुण्डिकाम् । तरिष्यामो वयं नावा सरितं श्रमवर्जिताः॥ भीमं भीमवचः श्रुत्वां कैवर्तः कम्प्रमानसः । चकम्पे कर्तनां प्राप्त इवैतत्क्षीणदीधितिः ॥२८५ छोटेसे जलके गढेमें मर जाता है, ऐसी परिस्थिति हमकोभी प्राप्त हुई है। कर्मोदयके सामने किसीकाभी सामर्थ्य उपयोगी नहीं होता है। उसके आगे सब संसार असमर्थ है। धीवरके हायसे गिरकर मत्स्य जालमें पडा वहांसेभी वह निकला परंतु बकने उसको खा लिया इस प्रकार विचार कर ज्येष्ठ राजा युधिष्ठिरने भीमके सुंदर मुखको देखा। धर्माचरणमें तत्पर राजा युधिष्ठिर कर्तव्यमूढ़ होकर तर्कमें मग्न हुआ। वह भयसे व्याप्त होकर बोलने लगा कि "हे विपुलोदर भाई भीम, तू वीर है,इस भयके नाश करनेमें अब तू उपाय सुझानेवाला भाषण कर ॥ २७०-२७७॥ हे भीम, हमने क्या सोचा था और क्या अनिष्ट प्राप्त हुआ है। राजकन्याने जिसे वर पसंद किया था वह ब्राह्मण व्याघ्रमे खा डाला ऐसी कहावतके समान यह बात हुई है । अतः बीचमें उत्पन्न हुए इस विघ्नके नाशार्थ कोई उपाय करना चाहिये । शान्तिके लिये कोई उपाय मेरे मनमें नहीं सूमता है। और चिन्तासे मेरी बुद्धि नष्ट हुई है" ॥ २७८-२७९ ॥ भोयें कुटिल होनेसे जिसका मुंह कुटिल हो गया है अर्थात् भयंकर हुआ है ऐसा भयरहित भीम बोला-“हे राजन् अवसर देखकर सुबुद्धिमान् लोग कार्य करते हैं। अपायरहित निर्दोष एक उपाय मेरे मनमें सूझा है, और वह उपाय मेरी कीर्तिकी वृद्धि करनेवाला है। जिस उपायसे अकीर्ति नहीं होगी, अपमान नहीं होगा और निंदा नहीं होगी और हानिभी कुछ न होगी वह उपाय सर्व कार्यकी सिद्धिके लिये करना चाहिये। यह धीवर बढते हुए जरारूपी ज्वरसे पीडित हुआ है। इसकी आकृतिभी टेढी मेढी है, यह दरिद्री, कुरूप, दीन, दुःखोंसे जला हुआ, और दयारहित है। इसको मारकर बलि देंगे जिससे तुण्डिका संतुष्ट होगी और हम सब बिना प्रयासके नौकासे नदीपार जायेंगे । ॥ २८०-२८४ ॥ भीमका यह भयंकर वचन सुनकर धीवरका मन भयसे काँपने लगा। मानो वह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy