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________________ (२४) भीमको देखकर उसमें अनुरक्त हुई अपनी कन्याको लक्ष्य कर वृषध्वजने उसे बुलाकर भिक्षाके रूपमें देनेके लिये दिशानन्दाको उपस्थित किया । "हे राजन् ! मैं नहीं जानता, बडे भाई जाने " इस प्रकार भीमके कहनेपर राजाने युधिष्ठिर आदिको बुलाया और यथायोग्य आदरसत्कार कर भीमके साथ कन्या दिशानन्दाका विवाह कर दिया। पाण्डवोंका हस्तिानापुर आगमन यहांसे जाकर पाण्डव विन्ध्याचलपर पहुंचे। वहां माणिभद्रक यक्षसे भीमको शत्रुक्षयंकरा गदा प्राप्त हुई । इसके पश्चात् वे दक्षिण दिशाके देशोमें परिभ्रमण कर हस्तिनापुर जानेके लिये उद्यत हुए । मार्ग में जाते हुए उन्हे माकन्दीपुरी प्राप्त हुई । पाण्डव वहां ब्राह्मण वेषमें किसी कुम्हारके घर ठहर गये । वहांका राजा द्रुपद था। उसकी पत्नीका नाम भोगवती था। उसके धृष्टद्युम्न आदिक पुत्र और द्रौपदी नामकी पुत्री थी । राजा द्रुपदने द्रौपदीके विवाहार्थ स्वयंवर किया । ब्राह्मणवेषको धारण करनेवाले अर्जुनने गाण्डीव धनुषको चढाकर वहां राधावेध [ चक्कर खाती हुई राधाकी नाकके मोतीका वेधन ] किया । तब द्रौपदीने अर्जुनके गलेमें माला पहना दी। दैववश वह माला वायुके निमित्तसे बिखरकर पांचों पाण्डवोंके पर्यङ्कमें फैल गई। इससे दुष्ट पुरुषोंने — इसने इन पाचोंको वरण किया ' ऐसी घोषणा की । द्रौपदीका यह कार्य दुष्ट दुर्योधनको सह्य न हुआ। उसने " राजाओंके रहते हुए ब्राह्मणको द्रौपदीसे विवाह करनेका क्या अधिकार है ?" इस प्रकार राजाओंको भड़काया । उससे प्रेरित होकर बहुतसे राजा युद्धके लिये उद्यत हो गये। परन्तु पाण्डवोके सामने वे टिक नहीं सके । अन्तमें अर्जुनके सामने स्वयं द्रोणाचार्य उपस्थित हुए। " जिन पूज्य गुरु देवके प्रसादसे निर्मल धनुर्विद्या प्राप्तकर युद्धमें विजय प्राप्त की, उनके साथ कैसे युद्ध ? " यह सोचकर उसने स्वपरिचय युक्त बाण भेजा । द्रोणाचार्यने यह समाचार सबको सुना १ हरिवंशपुराणमें कन्याके अनुरक्त होनेका उल्लेख नहीं है। किन्तु राजा वृषध्वजने भिक्षार्थी भीमको महापुरुष जानकर स्वयंही उसे कन्या देनेका प्रस्ताव किया। '-यह भिक्षा अपूर्व है, ऐसी भिक्षाके प्रति स्वतन्त्रता नहीं है-' यह कहकर और वहांसे जाकर भीमने उनसे (युधिष्ठिर आदिसे ) निवेदन किया । — यहां वे डेढ मास रहे। [४५, १०७-११३] २ हरिवंशपुराणमेंभी ठीक इसी प्रकारसे कहा गया है । यथाविहृत्य विविधान् देशान दाक्षिणात्यान् महोदयाः। ते हास्तिनपुरं गन्तुं प्रवृत्ताः पाण्डुनन्दनाः॥ __ प्राप्ता मार्गवशाद् विश्वे माकन्दी नगरी दिवः । प्रतिच्छन्दस्थितिं दिव्यां दधाना देवविभ्रमाः ।। ह. पु. ४५, ११९-२० ३ उत्तरपुराणमें नगरीका नाम कम्पिल्या और द्रुपदपत्नीका नाम दृढ़रथा पाया जाता है । यथाकम्पिल्यायां धराधीशो नगरे द्रुपदाहयः । देवी दृढ़रथा तस्य द्रौपदी तनया तयोः ॥ ७२-१९८ दे. प्र. पां. चरित्रमें नगरीका नाम काम्पिल्य बतलाया गया है। [४, ३४ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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