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________________ एकादशं पर्व २२५ करान्प्रसारयन्बुच्चैरुदितोऽयं दिवाकरः । जगत्प्रबोधमाधत्ते तव गर्भार्भको यथा ॥११२ सुप्रभातं तवास्तूचैः कल्याणशतभाग्भव । अर्क प्राचीव सोपीष्ठाः सुतं भवनभासकम् ॥११३ इति श्रुते प्रबुद्धा सा प्राग्बुद्धा स्वमदर्शनात् । उत्तस्थे शयनाच्छीघ्रं हंसी वा सैकतस्थलात् ।। प्रातर्विधिविधानज्ञा सुस्नाता प्राप्तमङ्गला । पश्यन्ती दपणे वक्त्रं संस्कृता वरभूषणैः॥११५ समुद्रविजयाभ्यणं तूर्ण गत्वा नता सती । स्वोचितेन नियोगेन स्वोचितं स्थानमासदत् ॥ प्रफुल्लवदनाम्भोजा करकुड्मलधारिणी । यथादृष्टसुस्वमानां फलं पप्रच्छ भूपतिम् ॥११७ अभाणीद्भपतिर्भद्रं भुजानो भुवनेश्वरः । प्रिये प्रीतिकरे स्वमफलं शृणु सुबोधतः॥११८ सूनुस्ते भविता देवि गजदर्शनतो वृषात् । जगज्ज्येष्ठो महावीर्यो मृगारेर्दामक्षिणात् ।।११९ धर्मतीर्थकरो लक्ष्म्याभिषेकं मेरुमस्तके । आप्तासौ पूर्णचन्द्रेण जनाहादी च भास्करात् ॥ भास्वरः कुम्भतः प्रोक्तो निधीनामीशिता सुखी । सरसा लक्षणाकीर्णोऽब्धिना स केवलेक्षणः ॥ सिंहासनेन साम्राज्यं भोक्ता नाकविमानतः । नाकादस्यावतारः स्यात्फणीन्द्रभवनेक्षणात् ॥ हो रहा है। हे माता,जैसे तेरा गर्भस्थितबालक उत्पन्न होकर जगतको प्रबोध-ज्ञान देगा वैसे यह उदित होनेवाला सूर्य अपनी किरणोंको फैलाकर जगतको जागृत कर रहा है। हे माता, तुम्हारा प्रातःकाल मंगलकारक होवे, तू सैंकडो कल्याणोंको प्राप्त हो। पूर्वदिशा जगतको जागृत करनेवाले सूर्यको जन्म देती है वैसे हे माता, तूं जगतको उपदेशसे जागृत करनेवाले पुत्रको जन्म दे। स्वप्नदर्शनके कारण पूर्वही जागृत हुई वह रानी इस प्रकारके देवांगनाओंके आशीर्वाद सुनकर जागृत हुई। बारीक बालूके स्थलसे ऊठनेवाली हंसीकी तरह वह रानी शय्यासे शीघ्र उठ गई। प्रातःकालके स्नानविधिको जाननेवाली, मंगलस्नान कर, शुचिर्भूत हुई शिवादेवी उत्तम भूषणोंसे अलंकृत होकर समुंद्रविजय महाराजके पास शीघ्र जाकर उनको नमस्कार कर नियोगानुसार अपने योग्य स्थानपर बैठ गई ॥ १११–११६ ।। जिसका प्रफुल्ल मुखकमल है ऐसी शिवादेवीने अपने दोनो हाथ कमलकलीके समान जोड कर, जैसे स्वप्न देखे थे उस क्रमसे उनका फल राजासे पूछा ॥११७॥ . [ राजाने स्वप्नफलोंका वर्णन किया ] जगतका अधिपति, पुण्यके वैभवको भोगनेवाला राजा इस प्रकार कहने लगा। हे प्रीति करनेवाली प्रिये, अपने सुज्ञानसे स्वप्नोंका फल तू सुन । देवि, हाथी देखनेसे तुझे पुत्र होगा। बैल देखनेसे वह जगतमें ज्येष्ठ होगा। सिंह देखनेसे महापराक्रमी होगा। पुष्पमालाओंके देखनेसे वह धर्मतीर्थकर होगा। लक्ष्मीके देखनेसे मेरुपर्वतके शिखरपर उसे अभिषेक प्राप्त होगा और पूर्णचन्द्रसे वह जगतको आनंदित करेगा। सूर्यसे अतिशय तेजस्वी, कुंभसे नवनिधियोंका प्रभु और सुखी, सरोवरसे एक हजार आठ लक्षणोंसे युक्त देहका धारक, समुद्रसे केवलज्ञान-नेत्रका धारक, सिंहासनसे साम्राज्यका भोता, स्वर्गके विमानसे स्वर्गसे भूतलपर उसका आगमन, नागेन्द्रका विमान देखनेसे वह अवधिज्ञाननेत्रसे युक्त, रत्नराशिसे गुणोंके समूहको पां. २९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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