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________________ १८८ पाण्डवपुराणम् राजगृहं पुरं तत्र राजराजगृहोन्नतम् । धनदामरलोकात्यमलकानगर प्रथा ॥ २१८ जरासंधो नरेन्द्राणां मान्यो वैरिमदापहः । नवमः प्रतिविष्णूनां राजते तत्र पत्तने ॥२१९ तस्य कालिन्दसेनाख्या कालिन्दीव रसावहा । विशाला कमलाकीर्णा विमलाभूत्सुभामिनी।। भ्रातरः सुतरां तस्य न केनापि पराजिताः । अपराजितमुख्याश्च सन्ति सन्तो महोद्यताः॥ सनयास्तनयास्तस्य विनयोनतमानसाः। सुकाला इव संरेजुस्ते कालयवनादयः ॥ २२२ इत्थं राजगृहाधीशो राजते राजसिंहवत् । भूचरैः खेचरैः सेव्यो विजितारातिमण्डलः ॥२२३ विपत्तिस्तस्य सहजा भविता परतोऽथवा । आख्याहि ख्यापने शक्त इति मनिश्चयाय च ।। निशम्येति वचोऽवादीच्छृणु तेऽद्य मनोगतम् । धृतराष्ट्र धराधीश धृतिं धृत्वा विशुद्धधीः ॥ महलोंसे अतिशय उन्नत दीखता है। तथा धनदामरलोकाढय-धनद-श्रीमन्त और अमर दीर्घजीवी लोगोंसे परिपूर्ण है। उस नगरीमें राजाओंको मान्य, शत्रुओंके गर्वका नाश करनेवाला प्रतिनारायणोंमें नौवा जरासंध नामक राजा विराजमान है ॥ २१७-२१९ ॥ श्रीजरासंध राजाकी रानी कालिंदसेना नामकी है। वह कालिन्दी नदीके समान-यमुनानदीके समान है। यमुनानदी रसावहा-जलको धारण करनेवाली होती है और यह रानी रसावहा शृंगारादिरसोंको धारण करती है। नदी कमलाकीर्णा-कमलोंसे व्याप्त होती है, और रानी कमला-लक्ष्मीसे आकीर्ण-भरी हुई संपत्तिशालिनी है। यमुनानदी विशाल-बडी है और यह रानी भी बडी-स्त्रियोंमें मान्य है। यमुनानदी विमला-स्वच्छजल धारण करनेवाली है। रानीभी विमला-मल-दोषोंसे रहित है ॥ २२०॥ जरासंधके जिनमें अपराजित मुख्य है ऐसे अनेक भ्राता हैं। वे सब महान् उद्यमी-पराक्रमी हैं। अत एव वे किसके द्वारा पराजित नहीं किये जाते हैं। राजाके कालयवनादि नामके अनेक पुत्र हैं। वे नीतिसंपन्न है, विनयादि गुणोंसे उनका मन उन्नत हुआ है और वे उत्तम कालके समान हैं। अर्थात् उत्तम कालमें जैसे धनधान्यसंपन्नता होती है वैसे इन कालयवनादि पुत्रोंमें गुणसंपन्नता है। इस प्रकार राजगृहनगरके खामी जरासंधराजा राजाओंमें सिंहके समान शोभता है। उसकी भूगोचरी राजा अर्थात् भूतलपर राज्य करनेवाले राजा और खेचरविजयार्ध पर्वतपरके देशोंमें राज्य करनेवाले विद्याधर राजा ऐसे दोनों प्रकारके राजा सेवा करते हैं। उसने शत्रुओंके देशपर विजय प्राप्त की है ॥ २२१-२२३ ॥ ऐसे जरासंध राजाकी मृत्यु अपने आप होगी अथवा अन्यसे होगी ? इन प्रश्नके उत्तर देनेमें हे योगीश आप समर्थ हैं। अतः मुझे निर्णयके लिये आप उत्तर कहिये ॥ २२४ ।। [मुनीश्वरने भविष्यकथन किया ] यह धृतराष्ट्र राजाका प्रश्न सुनकर मुनीश्वरने कहाहे पृथ्वीपति धृतराष्ट्र, तूं निर्मल बुद्धिवाला है, तू धैर्य धारण कर सुन । आज तेरे मनके अभिप्रायका खुलासा मैं करता हूं ॥ २२५॥ दुर्योधनादिक भूपाल और पाण्डवोंका राज्य प्राप्तिके लिये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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