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________________ अष्टम पर्व १५३ प्रविशन्पुरनारीभिः पुरं पाण्डुः प्रवीक्षितः । मुक्तनिःशेषकार्याभिर्वर्याभिर्निजकर्मणि ॥६९ काचित्पृच्छति भो भद्रे क पाण्डुः कच गच्छति । भूत्या च कीदृशां सम्यक्झविष्टः पत्तनं शुभम् ।। काचिजगाद सुभगे ए हि शुभमङ्गले । तं द्रष्टुं कौतुकं तेऽद्य यदि त्वां दर्शयाम्यहम् ।।७१ काचिच्च मजने सक्ता श्रुत्वा यान्तं महीपतिम् । दधाव धावनं मुक्त्वार्द्धवस्त्रपरिधानका ॥७२ काचिद्भोजनवेलायां स्थिता भोजनभाजने । पाण्डोः समटनं श्रुत्वा मुक्त्वा तन्निर्गता गृहात् ।। रुदन्तं स्वाभकं हित्वा काचिदन्याभकं हठात् । अयासीच समादाय विचारपरिवर्जिता ॥७४ काचिच्च दपेणे वक्त्रं लोकयन्ती लसद्युति । यान्ती प्रवृद्धहस्तेव सादा दृश्यते जनः॥७५ वल्भमानं पतिं हित्वा प्रागल्भ्यादभ्रविभ्रमा । बाम वीक्षितुं काचित्तं पुरी ग्रथिलेव च ॥७६ अलङ्कारविधौ सक्ता सालङ्कारकरण्डकान् । हित्वा गतेर्भयाद्रष्टुं काचित्तमचलत्तदा ।।७७ कण्ठस्य भूषणं कठ्यां कण्ठे च श्रोणिभूषणम् । दधाव दधती काचित्को विवेको हि कामिनाम् ।। है वैसे भोगसंपन्न पाण्डुकुमारने अपनी दो पत्नीयोंको साथ लेकर वैभवपरिपूर्ण हस्तिनापुरमें प्रवेश किया । अपने गृहकृत्योंमें चतुर नगरनारियां अपने स्नानादि-कार्य छोडकर नगरमें प्रवेश करनेवाले पाण्डुकुमारको देखनेके लिये दौडने लगीं ॥६८-६९॥ कोई स्त्री अपनी सखीको पूछती है" हे भद्रे, पाण्डुकुमार कहां है ? वह कहां जाता है ? और वह कैसे ऐश्वर्यके साथ इस शुभ नगरमें प्रवेश कर रहा है मुझे उसका सब हाल कहो ?" तब उसकी किसी सखीने इस प्रकार कहा" हे सुभगे, हे शुभमंगले तुम आओ, आओ यदि तुम्हें आज उसको देखनेका कौतुक होगा तो तुम्हें मैं अवश्य दिखाऊंगी" ।। ७०-७१ ॥ कोई स्त्री स्नान कर रही थी इतनेमें उसने राजा आ रहा है ऐसी वार्ता सुनी की झट स्नान करना छोडकर और आधाही वस्त्र पहिनकर वह उसे देखनेके लिये दौडी ॥ ७२ ॥ कोई स्त्री भोजनके समय भोजनका पात्र लेकर भोजन कर रही थी, परंतु पाण्डुराजाका आगमन सुनकर भोजन छोडकर उसे देखनेके लिये घरसे निकल पडी ॥७३॥ किसी स्त्रीने रोते हुए अपने बालकको छोडकर किसी दूसरीकेही बालकको उठा लिया और विचाररहित होकर वह राजाको देखनेके लिये गई अर्थात् यह बालक मेरा है या अन्यका है इतना भी विचार उसने नहीं किया ॥ ७४ ॥ कोई स्त्री अपने तेजस्वी मुखकी कान्ति दर्पणमें देख रही थी, परंतु राजाका आममन सुनकर हाथमें दर्पण लेकरही वह निकली । दर्पणके साथ उसे देखकर मानो उसका हाथ, बढ गया है ऐसा लोग समझने लगे ।।७५॥ कोई स्त्री भोजन करते हुए पतिको छोडकर तारुण्यसे अपना भ्रूविलास दिखाती हुई राजाको देखनेके लिये चल पडी और पगलीसी नगरमें घूमने लगी. ॥ ७६ ॥ कोई. स्त्री अपने शरीरपर अलंकार धारण कर रही थी, परंतु राजा जल्दी जावेगा इस भीतिसे वह अलंकारके करंडे वैसेही छोडकर राजाको देखनेके लिये गई ॥७७॥ किसी स्त्रीने कंठका भूषण (हार) कमरमें और कमरका भूषण गलेमें धारण किया और वह राजाको पां. २. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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