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________________ १३८ पाण्डवपुराणम् कुरुजाङ्गलदेशेशो व्यासराजसुतोऽप्ययम् । मद्रपाकर्णनासक्तः पाण्डुरापाण्डुरद्युतिः ॥ २२३ मुद्रया रूपमुन्मुथ लन्धयोधानमन्दिरे । आयासीदत्र सांनिध्ये मम भोगार्थमानसः ।।२२४ प्राह धात्री धराकम्पं कम्पयन्तीं निजां तनम् । विरूपकमिदं पुत्रि किं कृतं कामचेतसा॥२२५ बाला वृद्धा प्रबुद्धा च विकलाङ्गी सयौवना । युवतिर्नरतो वाऽन्यथानिष्टसमागमः ॥२२६ बाले बलेन संभुक्तानेनेति मनुजाः किमु । वेत्स्यन्ति कथयिष्यन्त्यनया दुःकर्म ही कृतम् ॥ अनेन कर्मणा कन्ये कुलं कुवलयोज्ज्वलम् । निकलई तवाद्यापि सकलई भविष्यति।।२२८ यदि वेत्स्यन्ति वेगेनेदं विदो जनकादयः । विरूपकं तदा काम्ये किं कार्य च भविष्यति ॥ समझमेजया जाता जातनिःश्वासभाजिनी । सगद्गदखरा प्राह कुन्ती कुश्चितविग्रहा ।। २३० उपमातमहामातयुक्तसवाथेकोविदे। करवाणि किमद्याहं कथं कथय कामदे ॥ २३१ सुनकर मेरे ऊपर आसक्त हुआ है। उद्यानके लतागृहमें इसको एक अंगूठी मिली उससे अपना रूप बदलकर भोगमें आसक्त हुआ यह मेरे सन्निध आया है " ॥ २२०-२२४ ॥ कुन्तीको धायकी फटकार ] इस प्रकार कुन्तीसे वचन सुनकर पृथ्वीकंपके समान अपना शरीर कंपित कर धायने कहा, " हे पुत्री, कामाकुल मनसे तुमने यह अकार्य क्यों किया ? 'बालिका, बूढी, प्रौढा, अंगविकला-अंगहीन और तरुणी कोई भी स्त्री हो उसे पुरुषसंगति छोड़नाही चाहिये, अर्थात् पुरुषसे दूर रहनाही चाहिये । यदि वे दूर न रहेंगी तो अनिष्टप्राप्ति हुए बिना न रहेगी । हे बाले, क्या इसने (पाण्डुराजाने ) जबरदस्तीसे इस कन्याका (कुन्तीका) उपभोग लिया है ऐसा लोक समझेंगे ? लोक तो कहेंगे, कि इसनेही दुष्कृत्य किया होगा । अर्थात् हे कुन्ती वह पाण्डुराजा तो निर्दोषही रहेगा और लोग तुझे कलंकित समझेंगे । हे कन्ये, यह तेरे पिताका कुल रात्रिविकासी शुभ्रकमलके समान अद्यापि निष्कंलक है। परंतु तेरे ऐसे कुर्मसे वह कलंकित हो जायगा । यदि तेरा यह अयोग्य कार्य ज्ञानी मातापिता आदि शीघ्र जानेंगे तो क्या दुर्दशा होगी कौन जाने ?"। धायके वचन सुनकर कुन्ती शरीरके साथ कम्पित हुई अर्थात् उसका शरीर कांपने लगा और उसकी आत्मामें भी बहुत भय उत्पन्न हुआ। वह दीर्घ निश्वास छोडने लगी । उसका स्वर सगद्गद हुआ और उसका शरीर भी संकुचित हुआ । वह धायसे इस प्रकार बोलने लगी। " हे धाय, तू मेरी बडी माता है, तू युक्तियुक्त सब बातोंको जाननेवाली है। मेरी इच्छा पूर्ण करनेवाली हे माता, अब इस प्रसंगमें मुझे क्या करना होगा तूही बता । हे धाय, निर्दोष शीलसे वंचित हुए मुझे तू उपाय बतला दे। इस दोषको हटाकर मुझे स्वच्छ कर । हे वत्सलमाता, दोषको नहीं चाहनेवाली, मुझपर तुम दया करो । हे जननी, कार्तिको तोडनेवाला यह मेरा दुःख मृत्युके बिना नष्ट नहीं होगा । अतः मैं स्पष्ट कहती हूं, कि अब मैं शीघ्रही मर जाऊंगी"। कुन्तीके ये दुःखयुक्त वचन सुनकर धायके मनमें दया उत्पन्न हुई। उसका मुख मृत्युके सम्मुख हुआ देख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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