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________________ सप्तम पर्व ११९ कार्तिके द्वादशीघस्रे सिते चूततरोरधः । षष्ठोपवासतो बोधं पञ्चमं स समासदत् ॥३० तदा सुरासुराश्चक्रुः सेवां ज्ञानोद्गमे वराः । समवसृतिसंस्थस्य जिनारस्यारिघातिनः ॥३१ चैत्रकृष्णान्तघने स सम्मेदे मासमात्रकम् । मुक्तक्रियः सहस्रेण मुनीनां मुक्तिमाप्तवान् ।।३२ निर्वाणं च प्रकुर्वाणाः सुपर्वाणः सुरावगाः । कल्याणं कल्पनामुक्ता मुमुचुस्तस्य पाप्मनः॥ जीयाजिनारो विगतारिवारः सुरेन्द्रघृन्दारकवन्द्यपादः । किरन्कलारः सुसभाजनेशो वृष वृषात्मा वृषभो गरिष्ठः ॥३४ योऽभूद्धपोऽद्भुतात्मा धनपतिशुभवाक् प्राङ्मुनीनां पतिश्च पश्चाज्यायाञ्जितात्मा जयजितविधुरः संजयन्ते विमाने । देवानामाधिपत्यं गत इह सुपतिर्धर्मिणां धर्मराजः सोऽव्याधुष्माञ्जिनेन्द्रो निखिलनरपतिः कामदेवो वरारः ॥३५ करके प्रभु पापरहित हुए। केवलज्ञान होनेमें विघ्न उपस्थित करनेवाले ज्ञानावरणादि कर्मोका प्रभुने नाश किया। आम्रवृक्षके नीचे दो उपवासोंकी प्रतिज्ञा धारण कर प्रभु ध्यानस्थ बैठे और कार्तिक शुक्ल द्वादशीके दिन प्रभुको पांचवा बोध-केवलज्ञान प्राप्त हुआ ॥२९-३० ॥ घातिकर्मरूपी शत्रुका नाश करनेवाले प्रभु समवसरणमें विराजमान हुए । केवलज्ञानोत्पत्तिके समय श्रेष्ठ सुर और असुर आकर प्रभुकी सेवा करने लगे ॥ ३१ ॥ जब उनकी आयु एक मास-प्रमाण रह गई तब उनका विहार बन्द हुआ। वे सम्मेद शिखरपर चैत्र कृष्ण अमावास्याके दिन एक हजार मुनियोंके साथ मुक्त हो गये ॥ ३२ ॥ प्रभुका निर्वाण कल्याण करनेवाले देव मुखसे प्रभुका जयजयकार शब्द करने लगे । मिथ्याज्ञानसे मुक्त हुए वे देव प्रभुभाक्त करनेसे पापसे मुक्त हो गये ॥ ३३ ॥ शत्रुओंका समूह जिनसे दूर भाग गया है, देवेन्द्र और देवों के समूहसे जिनके चरण वंदन करने योग्य हैं, जो भव्यजनोंको कला- विज्ञानादिक देते हैं, वृषका ---धर्मका उपदेश देनेवाले, समवसरणमें आये हुए सर्व भव्योंके जो अधिपति हैं, धर्मस्वरूप, तथा धर्मसे शोभनेवाले ऐसे जिनपति अरनाथकी सदा जय हो ॥ ३४ ॥ पूर्वभवमें जिसकी आत्मा आश्चर्यकारक थी, जो धनपति इस शुभ नामको धारण करनेवाला राजा और दीक्षा लेकर मुनियोंका ज्येष्ठ स्वामी हुआ। अनंतर जितेन्द्रिय तथा परीषहजयके द्वारा संकटोंको जीतनेवाले, वे मुनिराज संजयन्त-विमानमें देवोंके अधिपति अहमिन्द्र हुए । वहांसे चयकर इस आर्यखण्डमें धार्मिकलोगोंके अधिपति धर्मराज तीर्थकर-पदके धारक हुए । जो संपूर्ण मनुष्योंके पति-चक्रवर्ती तथा कामदेव हुए वे श्रेष्ठ अरनाथ जिनेन्द्र आपका रक्षण करें ॥ ३५॥ [ श्रीविष्णुकुमार मुनि-चरित्र ] - अरनाथजिनेश्वरके पुत्रका नाम अरविन्द था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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