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________________ पाण्डवपुराणम् तदा सुरासुराः सर्वे निर्वाणपरमोत्सवम् । चक्रुः सुकृतकर्माणि कुर्वन्तः सिद्धिसिद्धये ॥२८२ जयोऽपि प्राप्तकैवल्यबोधनो घातिघातनात् । अघातिक्षयतः प्राप शिवस्थानं शिवोन्नतम्।।२८३ जयो जयतु जित्वरो जगति जैनशास्त्रार्थवित् । घनाघनसमः सदा सकलवैरिदावानले ॥ मनोमलविशोधनो विपुलशुद्धिसंपादकः । सुकौरवशिरोमणिः सुभगभव्यवारस्तुतः ॥२८४ इति वृषभजिनेशे प्राप्तनिर्वाणदेशे । सुघटितसुघटार्थे प्रोद्धृतप्राणिसार्थे । भरतभवनभोगी शुद्धसंवेगयोगी । भरतनरपपालो यातु मोक्षं दयालुः ॥२८५ इति विद्यविद्या-विशदभट्टारक-श्रीशुभचन्द्रप्रणीते ब्रह्म-श्रीपालसाहाय्यसापेक्षे श्रीपाण्डवपुराणे महाभारतनाम्नि जयसुलोचनोपाख्यानवर्णनं नाम तृतीयं पर्व ॥३॥ औदारिक, तैजस और कार्मण तीन शरीरोंके नाशसे अविनाशी मोक्षपद प्राप्त कर लिया । तब सर्व देव और असुरोंने सिद्धि की प्राप्तिके लिये पुण्यकर्मोको करते हुए आदिभगवानका निर्वाण महोत्सव किया ॥ २७९-८३ ॥ जयकुमार मुनिराज भी घातिकर्मका विनाश कर केवलज्ञानी हुए और अघातिकमोंके क्षयसे सुखपरिपूर्ण मोक्षको प्राप्त होगये ॥ २८३ ॥ जैनशास्त्रोंके अर्थोंका ज्ञाता, सम्पूर्ण वैरीरूपी दावानल शान्त करने के लिये सदा मेघके समान, मनका रागद्वेषादि मल नष्ट करनेवाला, उत्कृष्ट विशुद्धिको प्राप्त करनेवाला, उत्तम कौरववंशका शिरोमणि, विजयशाली जयकुमार राजा जगतमें जयवन्त रहे ।। २८४ ॥ जीवादिपदार्थ समूहको सुव्यवस्थित करनेवाले, प्राणिसमूहको संसारसे उद्धृत करनेवाले वृषभ जिनेश्वरके निर्वाणस्थानको प्राप्त होनेपर भरतक्षेत्ररूपी गृहके भोगी, संसारभयसे शुद्ध ध्यान धारण करनेवाले, दयालु भरतचक्रवर्ती मुक्तिको प्राप्त होवे ॥ २८५ ॥ ___इस प्रकार ब्रह्मश्रीपालकी सहायताकी अपेक्षा जिसमें है, ऐसे त्रैविद्यविद्यासे निर्मल भट्टारक श्रीशुभचन्द्रप्रणीत पाण्डवपुराणमें अर्थात् महाभारतमें जयकुमार सुलोचनाकी कथा वर्णन करनवाला तृतीय पर्व समाप्त हुआ ॥३॥ -arre Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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