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________________ तृतीयं पर्व सुमत्याख्याभवत्तस्या धात्री सर्वगुणान् कलाः। अवर्धयन्निशा शुक्ला रेखायाः शशिनो यथा॥२६ रम्भास्तम्भोरुकत्वेन सा रम्भा भाषिता बुधैः । तिलोत्तमसमूहेन तिलोत्तमैव सा मता ॥२७ भ्राजिष्णुकेशभारेण सुकेशी कथिता जनैः । परमैश्वर्ययोगेन सेन्द्राणीसमतां गता ॥२८ फाल्गुनेष्टाह्निकायां सा संपूज्य जिनपुङ्गवान् । कृतोपवासा तन्वङ्गी शेषां दातुं नृपं गता।।२९ सोऽपि तां तत्करां दृष्टोत्थाय तद्दत्तशेषिकाम् । कृताञ्जलि समाधाय न्यधत्त शिरसि स्वयम्॥३० उपवासपरिक्षीणा पुत्रि त्वं पारणाकृते । सदनं याहि वेगेनेति तां सोऽपि व्यसर्जयत् ॥३१ संपूर्णयौवनां बालां वीक्ष्य भूपः स्वमन्त्रिणः । पराश्रुतार्थसिद्धार्थसर्वार्थसुमतिश्रुतीन ॥३२ आहूयति समापृच्छत्कस्मे देयेति कन्यका । श्रुतार्थः प्राह भूपेशात्र भारतस्य मण्डनम् ॥३३ भरतस्य सुतो धीमानर्ककीर्तिर्वरो मतः । कुलं रूपं वयो विद्यावृत्तं श्रीः पौरुषादिकम् ॥३४ यद्ररेषु विलोक्येत तत्सर्व तत्र पिण्डितं । सिद्धार्थोत्रावदत्सर्वमस्तु किं च कनीयसः ॥३५ ज्यायसा सह संबन्धं नेच्छन्ति विबुधा जनाः । प्रभञ्जनो रथचरो बलिर्वज्रायुधस्तथा ॥३६ मेघस्वरो भूमिभुजस्तथान्ये सन्ति भूमिपाः। तेषु यत्राशयो वोऽस्ति तस्मै कन्येति दीयताम्।।३७ सुलोचनाको विद्वान् लोक रंभा कहते थ । उसके देहपर उत्तम तिलसमूह होनेसे उसे तिलोत्तमा कहते थे । कांतियुक्त केशसमूहसे उसे लोक सुकेशी कहते थे और महावैभवके संयोगसे वह इन्द्राणीके समान दीखती थी ॥ २७-२८ ॥ फाल्गुनकी अष्टाह्निकामें कृशाङ्गी सुलोचना उपवासके बाद जिनभगवंतकी पूजा करके शेषा देनेके लिये अपने पिताके पास गई। शेषा जिसके हाथमें है ऐसी सुलोचनाको देख कर तथा उठ कर दी हुई शेषाको अंजलीमें ग्रहण कर उसे अपने मस्तकपर राजाने स्वयं स्थापन किया । “ हे पुत्रिी, तुम उपवाससे क्षीण हुई हो अतः पारणाके लिये शीघ अपने घर जाओ" ऐसा कह कर राजान उसे घर भेज दिया ॥ २९-३१ ॥ अपनी पूर्ण यौवनवती कन्याको देख राजाने श्रुतार्थ, सिद्धार्थ, सर्वार्थ, और मुमति नामक मंत्रियोंको बुला कर पूछा कि सुलोचना कन्या किसे देना चाहिये ? उस समय श्रुतार्थने इस प्रकार कहा । "हे भूपेश, यहां भारतका भूषण भरत चक्रवर्ती है और उसका पुत्रा विद्वान् अर्ककीर्ति मुलोचनाके लिये योग्य वर है । कुल, रूप, वय, विद्या, सदाचार, श्री, पौरुष आदिक जो विशेषता वरमें देखी जाती हैं वे सब अर्ककीर्तिमें विद्यमान हैं"। तब सिद्धार्थने कहा "कुलरूपादिक सर्व वरयोग्य गुण चक्रवर्ती के पुत्रमें हैं परंतु विद्वजन छोटोंका बडोंके साथ संबंध होना पसंत नहीं करते। प्रभंजन, रथचर, बलि, वनायुध, मेघेश्वर तथा अन्य भी अनेक राजा भूगोचरी राजाओंमें श्रेष्ठ हैं, उनमेंसे आपको जो पसंद हो उसे अपनी कन्या आप देवें ।" ३२३७ ॥ इसके अनंतर सर्व कार्योको सिद्ध करनेवाले सर्वार्थ मंत्रीने इस प्रकार उत्तम भाषण किया। " भूगोचरी राजाओंके साथ तो हमारा सम्बन्ध पहलेहीसे हैही, परन्तु विद्याधरोंके साथ अपूर्व है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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