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________________ (४०) की उक्त देशना सुनकर सब प्रसन्न हुए तथा सब मस्तक झुकाकर अपने अपने स्थान को गये। षोडश सर्ग अजीव तत्त्व का वर्णन करने के पश्चात् शान्ति जिनेन्द्र ने प्रास्रवतत्त्व का १-३९ । २३०-२३३ वर्णन करते हुए, योग, उसके शुभ अशुभ भेद, सांपरायिक प्रास्रव ईर्यापथ प्रास्रव, तीव्रभाव, मन्दभाव, ज्ञातभाव, अज्ञातभाव, जीवाधिकरण और अजीवाधिकरण आस्रव के भेद बताये । पश्चात् ज्ञानावरणादि कर्मों के पृथक् पृथक् प्रास्रवों का निरुपण किया। ४०-७४ । २३३-२३६ बन्ध तत्त्व का विशद वर्णन करते हुए बन्ध के मिथ्यादर्शनादि कारण, ७५-११४ । २३६-२४० उसके प्रकृति प्रदेश आदि भेद, प्रकृति बन्ध के ज्ञानावरणादि मूलभेद तथा उनके उत्तरभेद, गुणस्थानों के अनुसार बन्ध त्रिभङ्गी, उदय त्रिभङ्गी तथा सत्त्व विभङ्गी का कथन किया। संवर तत्त्व का वर्णन करते हुए संवर का लक्षण तथा गुप्ति, समिति, धर्म, ११५-१३७।२४०-२४२ अनुप्रेक्षा, परिषह जय और चारित्र का स्वरूप समझाया। निर्जरा तत्त्व के वर्णन में निर्जरा का लक्षण और उसके कारण भूत द्वादश १३८-१८६ । २४२-२४७ तपों का विस्तृत निरूपण किया। पश्चात् मोक्ष तत्त्व का वर्णन किया। १८६-१९३ । २४७-२४८ तदनन्तर पार्य क्षेत्रों में विहार कर धर्म की प्रभावना की। विहार का १९४-२४० । २४८-२५५ वर्णन तदनन्तर एक मास तक योग निरोध कर ज्येष्ठ कृष्णा चतुर्दशी के दिन सम्मेद शिखरजी से मोक्ष प्राप्त किया। देवों ने मोक्ष कल्याणक का उत्सव किया। कवि प्रशस्ति । २५६ टीका कर्तृ प्रशस्ति । २५७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002718
Book TitleShantinath Purana
Original Sutra AuthorAsag Mahakavi
AuthorHiralal Jain, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherLalchand Hirachand Doshi Solapur
Publication Year1977
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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