SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २७ ) इसी संदर्भ में चक्रवर्ती की सुन्दरता का वर्णन है। चक्रवर्ती गायिकाओं ७५-१००। ३२-३५ को देख बहुत प्रसन्न हुआ। उनके साथ वार्तालाप कर उसने उन्हें सन्मानित किया। तदनन्तर चक्रवर्ती दमितारि ने अमित दूत को आज्ञा दी कि इन गायिकानों को कमक श्री पुत्री को सौंप दो । वही इनकी सब व्यवस्था तथा देखभाल करेगी। चतुर्थ सर्ग १-१० । ३६-३७ तदनन्तर वृद्ध कञ्चुकी ने एक दिन राज सभा में जाकर चक्रवर्ती दमितारि को सूचना दी कि हे राजराजेश्वर ! ध्यान से सुनिये । कन्या कनकधी के अन्तःपुर में जो गायिकाएं थी, वे गायिकायें नहीं थी। उनके छद्मवेष में राजा अपराजित और अनन्तवीर्य थे। अपराजित ने कन्या कनकधी को प्रभावित कर अनन्तवीर्य के अधीन कर दिया है और दोनों भाई कन्या को विमान में चढ़ाकर आकाश मार्ग से चल दिये हैं। पीछा करने पर उन्होंने कहा है कि हमने चक्रवर्ती से युद्ध करने के लिये ही कनकश्री का अपहरण किया है । युद्ध के लिये चक्रवर्ती को भेजो। जब तक चक्रवर्ती नहीं पाता तब तक हम विजयार्ध पर्वत से एक पद भी आगे नहीं जावेंगे। कञ्चुकी के मुख से यह सुनकर चक्रवर्ती ने तत्काल सभा बुलायी और सभा ११-३२ । ३७-३६ सदों से यह सब घटना कही। सुनते ही सभासदों का क्रोध भड़क उठा और वे युद्ध के लिये तैयार हो गये। महाबल आदि योद्धानों ने अपनी युद्धोत्कण्ठा प्रकट की। उनकी उत्कण्ठा देख सुमति मन्त्री ने कहाइस अवसर पर क्षमा से व्यवहार करना चाहिये । सब से पहले उनके पास ३३-१०२ । ३६-४६ दूत भेजना आवश्यक है उसके वापिस आने पर ही युद्ध करना चाहिए। सुमति मंत्री की संमति को मान्यता देते हुए चक्रवर्ती ने अपराजित और अनन्तवीर्य के पास अपना प्रीतिवर्धन नामका दूत भेजा । दूत ने जाकर विनयपूर्वक निवेदन किया परन्तु उसका कुछ भी प्रभाव उन पर नहीं पड़ा । उन्होंने युद्ध की ही आकांक्षा प्रकट की। प्रीतिवर्धन के वापिस पाने पर युद्ध की तैयारियां होने लगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002718
Book TitleShantinath Purana
Original Sutra AuthorAsag Mahakavi
AuthorHiralal Jain, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherLalchand Hirachand Doshi Solapur
Publication Year1977
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy