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________________ ३८४ ] मह मंबर पुराण कुलनलं कुडिप्पेरिय कळिय मेवं ।। पुलै मगळिर कार कळिर पुळक्कळेन पोरिवार ।।९५६॥ अर्थ-जीव का बध करना अथवा हिंसा करना, दूसरों की वस्तु चुराना, असत्य बोलना, अति परिग्रह का संपादन करना,अधिक की पाशा करना ऐसे जीवों को नरक में वृक्ष पर चढाकर उसे नीचे गिरा देते हैं। इससे उनको महान दुख या कष्ट होता है । अपने पति को छोडकर अन्य पुरुषों के साथ विषयभोग करने वालों को वे नारकी जीव जैमे अग्नि में पडा हुमा जीव तिलमिलाता हुआ दुखी होता है उसी प्रकार नरक में अग्नि डालकर जन को जला देते हैं ।।९५६।। तोलिने उरित्तिडु निनत्तडि सुवेत्तार । सोलि पुग नी निर्यु सोरिय उरिगिंडार ॥ माल कुड मन्नवर वंजन शंदमैच्चर् । शालक्कळ निरत्ति लुरत्तामं कनै तिरुप्पार ॥९५७॥ इनय तुयरेनरिय उडेय वेळु निलत्तिल् । विनई लिरंडा नरगिन वोळं व उनै मीटल् ॥ मुनिवरिरै तनक्कु मरिदाय उळदागुं। इनि येनुर येन्निनु मिदं शिरि दुरैप्पेन ॥६५८॥ अर्थ-जीवों के शरीर के चर्म को खींचकर खाने वाले मनुष्य को वे नारकी जीव जब वह चलता फिरता है तब उस पर आग बरसाते हैं । उस अग्नि से उस नारकी जीव का चर्म जलाते हैं । इससे वह अत्यन्त दुख पाता है। उस दुख का वर्णन करना यहां अशक्य है । मानव प्राणी को रक्षण करने वाले राजा के साथ द्रोह करना इत्यादि कपट बुद्धि से किये हुए अत्याचारी को नरक में दुख देते समय वह नारकी जीव हाहाकार मचा देता है । उस समय वहां के नारकी कहते हैं कि इस पाप कर्म के फल से तूने नरक में जन्म लिया है । अब तुमको इस नरक से छुटकारा कराने के लिये गणधर अहंत भी शक्य नहीं है । कोई से भी साध्य नहीं है और इसके सिवाय कोई धर्मोपदेश करने वाला भी नहीं है। इसलिए हे वासुदेव! इस समय तेरी धर्म मार्ग को ग्रहण करने की इच्छा है तो मैं दूसरा मार्ग बता देता हूं। तुम सुनो! ॥९५७।१९५८11 पोरि पुलं वेरुत्तेल तवत्तमर नागि । मरत्तोडु मलिदोळिरु माळि मन्न नागि । पोरि पुर मिशे पोलि मनत्तोडु पुनरं दाय । करुत्तु मुई मेनि नरगत्तिङ गरण मानाय ॥६५॥ अर्थ-हे नारकी ! पंचेन्द्रिय विषयों को त्यागकर वैराग्य को प्राप्त होकर तूने देवलोक में जन्म लिया। तत्पश्चात् वहां से चयकर मध्यलोक में कर्मभूमि में प्राकर चक्रवर्ती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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