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________________ मेरु मंबर पुराण [ ३॥ विदि यरि पुलवर सूळंतु वेदि शीयासनोत्तु । मदियन्न कुडयो नीळल वैत्तु शायरगळ वीस ॥२१॥ अर्थ-जिस प्रकार पूर्णमासी के चंद्रमा तथा मेघ मंडल को देखकर समुद्र वृद्धि को प्राप्त होता है उसी प्रकार वीतभय और विभीषण को देखकर अयोध्यानगरी की जनता अत्यन्त मानन्दित हुई । वहां के राजपुरोहित द्वारा वीतभय को राजसिंहासन पर विराजमान कराया। ॥९२१॥ पार् कडर् तेन्नोर परुदियिन् कडिय कुंभ । माद वायिरत्तोरेखि नमरराव पट्ट । नूर कडल केद्धि यार कनुनित्त मंविरंगळ सोल्लि । येटवा राटिनार गळेटिनार् पाति बंदर् ॥२२॥ अर्थ-बासुदेव को राज्यसिंहासन पर प्रारूढ करने के पश्चात् जिस प्रकार भगवान के अभिषेक के लिए १००८ गण बुद्धों से तथा रत्न घटों से क्षीर सागर से पानी लाते हैं, उसी प्रकार अनेक घटों से वासुदेव का राज्याभिषेक किया गया, और सभी अयोध्यावासियों ने तथा कई सजानों ने स्तुति की ।।६२२॥ मुडिय दन् पिननिबार मुरशेकन् मुरशेंकन मुळंदग मुम्मै । पडिमिश येरस रोरेनायिरर् पनिय विज ॥ तडवरं यरस रैवत्तजि नुक्किरट्टि ताळ । पडरोळि परप्प वेन्ना इरवर विनोर् पनिवार् ॥२३॥ अर्थ-राजा वासुदेव का राज्याभिषेक करते समय अठारह प्रकार के वाद्यों की गर्जना हुई और जयघोष को ध्वनि हुई। तीन खंड के सोलह हजार मुकुटबद्ध राजा तथा विजयाद्ध पर्वत पर रहने वाले विद्याधर सभी ने मिलकर तथा आठ हजार गण बद्धों ने उनको नमस्कार किया ॥२३॥ याने इन दोगुदि नार्पत्तिरंड नूराइरंतेर् । यान मददुबे वासि योबदिन कोडि काला ॥ कानु कार्पत्तिरंडु कोडितानवर कडेवर । तानमानंग लेनाइर् मह पदबाये ॥२४॥ अर्थ-उस समय रामकेशव के पास बियालीस लाख हाथी, बियालीस लाख रथ, नौ करोड घोडे, बियालीस करोड योद्धा तथा पाठ हजार विद्याधर प्रादि सभी मिलाकर बह प्रकार की सेना उनके पास थी ।।१२४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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