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________________ परिचय न होने के कारण इस ग्रन्थ का अनुवाद करने में हम असमर्थ रहे । परन्तु कतिपय दिन बाद हमें ऐसा संयोग मिला कि ब्रह्मचारी मारिणक्य नैनार संघ में सम्मिलित होकर अपने प्रात्म-कल्याण हेतु अनायास ही पधारे। तब हमने उन्हें क्षुल्लक दीक्षा देकर संघ में सम्मिलित कर लिया और उनका नाम इन्द्रभूषण रखा । तत्पश्चात् उनसे वामिल में बोलचाल अक्षराभ्यास सतत चालू रहा। - इससे हमें तामिल के अक्षर पढने का ज्ञान, बोलने की शक्ति साधारणतया प्राप्त हो गई । तत्पश्चात् इनके द्वारा कहे जाने वाले मेरु मंदर के अनुवाद कनडी मराठी और हिंदी भाषाओं में भाषांतर अनुवाद, मूलश्लोक का अर्थ भावार्थ जैसा था तदनुसार ही किया गया है । तामिल भाषा में अनभिज्ञ होने से यदि कोई किसी स्थान पर अशुद्धि रह गई हो तो तामिल भाषा के विद्वान् इसको संशोधन कर लेवें। इस ग्रन्थ के लिखने का प्रयास श्री मिलापचन्दजी गोवा बागायत वालों ने जो कि जयपुर के रहने वाले हैं निःशुल्क किया है । अतः हम उन्हें अपना हार्दिक धन्यवाद एवम् शुभाशीर्वाद देते हैं । अब इस ग्रन्थ का सार विषय लिखा जावेगा। -(प्रा.) देशभूषण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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