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________________ प्रस्तावना मेरु मंदर पुराण के कर्ता का नाम और समय यह ग्रन्थ मेरु मंदर पुराण श्री वामनमनि के द्वारा रचा गया है। इस ग्रंथ में जन्म-स्थान नाम आदि का परिचय उन्होंने स्वयं कुछ नहीं दिया है। प्रादि अगस्त्पर मुनि के शिष्य एक अन्य वामन मुनि हो गये हैं। और इनके शिष्य अन्य हैं । परन्तु इस ग्रंथ के कर्ता वामन मुनि अन्य मालूम पड़ते हैं। दूसरे एक वामनमुनि अलंकार शास्त्र आदि के रचयिता अन्य थे। दूसरे ग्रंथ में-एलाचार्य कंदकंद के नाम से वामन मनि उल्लेख पाया जाता है। इसलिये इस मेरु मंदर के रचयिता अन्य कोई वामन मूनि हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है । इस ग्रन्थ के कर्ता के रचित ग्रन्थ और इनकी रचना शैली के मनन करने से मालूम होता है कि ये संस्कृत के महान् प्रकाण्ड विद्वान् थे। ___ इस मेरु मंदर ग्रन्थ के पढने से मालूम होता है कि यह तामिलभाषा के भी महान् विद्वान् थे। मद्रास प्रांत में कांचीपुर नगर के समीप तिरुपरित कुन्ड्र नाम का एक गांव है। उसमें एक अच्छा पुराना जैन वृषभनाथ भगवान का मन्दिर है। इस मन्दिर में ग्रन्थकर्ता के चरण और चरित्र को शिलालेख में उत्कीर्ण किया गया है। परन्तु ठीक पढने में नहीं प्राता है। उस मन्दिर में कोरा नाम का एक वृक्ष है। उस वृक्ष के नीचे मल्लिषेण मुनि अपरनाम वामन मुनि तथा इनके शिष्य पुष्पसेन-इन दोनों की चरण पादुका वहां विराजमान है । उन चरणों के नीचे पत्थर में निम्न लिखित श्लोक लिखा हुआ है : श्रीमंत जगतामेकं मित्रसमन्वितम् । बंदेऽहं वामनाचार्ग मल्लिषेण-मुनीश्वरम् ।। इस श्लोक से वामन मुनि का अन्य नाम मल्लिषेण भी प्रतीत होता है। इन मल्लिषेण मुनिराज ने पंचास्तिकाय, प्रवचनसार, समयसार, स्याद्वादमंजरी इन ग्रंथों का तामिलभाषा में अनुवाद किया है। इसके अतिरिक्त तामिलभाषा में जो नीलकेशी नाम का ग्रन्थ है, उसकी समयदिवाकर नाम की टीका लिखी है। वे यही वामन नि होने चाहिये । इससे मालूम पड़ता है कि ये वामन मुनि तामिलभाषा के तथा संस्कृत भाषा के प्रकाण्ड विद्वान् थे । तथा अपने समय में सर्वत्र काफी प्रसिद्ध थे। इन मल्लिषेण मूनि के लिए संस्कृत भाषा में विद्वान् होने के कारण 'उभयभाषात्मक कवि चक्रवर्ती' ऐसा विरुदावली में लिखा गया है । क्योंकि इन्होंने एक जगह ऐसा उद्धृत किया है कि मैं तामिल भाषा में एक ग्रन्थ की रचना करूंगा। इससे प्रतीत होता है कि इस ग्रन्थ की रचना के पहले कोई संस्कृत ग्रन्थ की रचना की होगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002717
Book TitleMeru Mandar Purana
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages568
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size1 MB
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