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________________ ४३४ - कत्तिगेयाणुप्पेखा [गा० ४१६जो सग्ग-सुह-णिमित्तं धम्मं णायरदि दूसह-तवेहिं । मोक्खं समीहमाणो णिक्खंखा जायदे तस्स ॥ ४१६ ॥ दह-विह-धम्म-जुदाणं सहाव-दुग्गंध-असुइ-देहेसु । जं जिंदणं ण कीरदि णिविदिगिंछा गुणो सो हु॥ ४१७ ॥ भय-लज्जा-लाहादो हिंसारंभो ण मण्णदे धम्मो । जो जिण-वयणे लीणो अमूढ-दिट्ठी हवे सो हुँ ॥ ४१८ ॥ जो पर-दोसं गोवदि णिय-सुकयं जो ण पयडदे लोए। भवियव-भावण-रओ उवगृहण-कारओ सो हु॥४१९ ॥ धम्मादो चलमाणं जो अण्णं संठवेदि धम्मम्मि । अप्पाणं पि सुदिढयदि ठिदि-करणं होदि तस्सेव ॥ ४२० ॥ जो धम्मिएस भत्तो अणुचरणं कुणदि परम-सद्धाए । पिय-वयणं जपंतो वच्छलं तस्स भवस्स ॥ ४२१ ॥ जो दस-भेयं धम्मं भव-जणाणं पयासदे विमलं। अप्पाणं पि पयासदि णाणेण पहावणा तस्स ॥ ४२२ ॥ जिण-सासण-माहप्पं बहु-विह-जुत्तीहि जो पयासेदि । तह तिवेण तवेण य पहावणा णिम्मला तस्स ॥ ४२३ ॥ जो ण कुणदि पर-तत्तिं पुणु पुणु भावेदि सुद्धमप्पाणं । इंदिय-सुह-णिरवेक्खो णिस्संकाई गुणा तस्स ॥ ४२४ ॥ णिस्संका-पहुडि-गुणा जह धम्मे तह य देव-गुरु-तच्चे । जाणेहि जिण-मयादो सम्मत्त-विसोहया एदे ॥ ४२५ ॥ धम्मं ण मुणदि जीवो अहवा जाणेइ कहव कटेण । काउं तो वि ण सक्कदि मोह-पिसाएण भोलविदो ॥ ४२६ ॥ जह जीवो कुणइ रई" पुत्त-कलत्तेसु काम-भोगेसु । तह जइ जिणिंद-धम्मे तो लीलाए सुहं लहदि ॥ ४२७ ॥ १लमसग मुक्खं। २ लमसग कीरह। ३ व गुगो तस्स (?)। ४ब भयलजगारवेहि य(?)। ५ मसग(ल?)हु। ६ लमसग सुकयं णो पयासदे। ७ म भविअव्व । ८ ब टिदियरणं। ९ब दस-विहं च धम्मं । १० ब तत्ती। ११ मस पुण पुण (?)। १२ ब भावेइ। १३ मणिरविक्खो। १४गतह देव। १५ ब विसोहिया। १६ म जीओ। १७ ब (?) मस रई। १८ब भोएस। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002713
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorSwami Kumar
AuthorA N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages594
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Spiritual
File Size15 MB
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