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________________ १०८ स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा [गा०१६८ साधेद्वादशकोटियोजनमात्रं भवति । एतान्युक्तघनफलानि प्रदेशीकृतानि तदेकेन्द्रियस्य चतुःसंख्यातगुणितघनाडलमात्र ६.. द्वीन्द्रियस्य त्रिसंख्यातगुणितघनाङ्गुलमात्र ६00.0त्रीन्द्रियस्यैकसंख्यातगुणितघनाकुलमात्र ६। चतुरिन्द्रियस्य द्विसंख्यातगुणितघनाङ्गुलमात्र ६ पञ्चेन्द्रियस्य पञ्चसंख्यातगुणितघनाकुलमात्र ६00.00 ॥ १६५ ॥ अथ नारकाणां देहोत्सेधमाह पंच-सयाधणु-छेहा सत्तम-णरए हवंति णारइयां। तत्तो उस्सेहेण य अद्धद्धा होति' उवरुवरि ॥१६८॥ [छाया-पञ्चशतधनूत्सेधाः सप्तमनरके भवन्ति नारकाः। ततः उत्सेधेन च अर्धार्धाः भवन्ति उपर्युपरि ॥] सप्तमे नरके माधव्याम् उत्कृष्टतो नारका पञ्चशतधनुःशरीरोत्सेधाः भवन्ति ५०० । ततः सप्तमनरकात् उपर्युपरि एकसौ चवालीस हुए । उसमें मुख ४ का आधा २ घटानेसे १४२ रहे । उसमें मुखके आधा प्रमाण २ के वर्ग चारको जोड़नेसे एकसौ छियालीस हुए। उसका दूना करनेसे २९२ हुए। उसमें ४ का भाग देनेसे ७३ हुए । ७३ में पाँचको गुणा करनेसे तीन सौ पैंसठ योजन शंखका क्षेत्रफल होता है । तेइन्द्रियोंमें उत्कृष्ट अवगाहनावाला, उसी स्वयंभूरमण द्वीपके परले भागमें जो कर्म भूमि है वहाँ पर लाल बिच्छु है । वह ३ योजन लम्बा, और लम्बाईके आठवें भाग ३३ चौड़ा और चौड़ाई से आधा ऊँचा है । यह क्षेत्र लम्बाईकी लिये हुए चौकोर है । इस लिये लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाईको गुणा करनेसे क्षेत्रफल निकलता है । सो यहाँ लम्बाई ३ को चौड़ाई ३३ से गुणा करनेपर १८ हुआ इसको ऊँचाई ३ से गुणा करनेपर २२८४८३१३ योजन घन क्षेत्रफल होता है । चौइन्द्रियोंमें उत्कृष्ट अवगाहनावाला उसी स्वयंभूरमणद्वीप सम्बन्धी कर्मभूमिमें भौरा है । वह एक योजन लम्बा, पौन योजन चौड़ा और आधा योजन ऊंचा है । सो तीनोंको गुणाकरनेसे १४३ x ३ = ३ योजन घन क्षेत्रफल होता है । पञ्चेन्द्रियोंमें उत्कृष्ट अवगाहनावाला स्वयंभूरमण समुद्रका महामत्स्य है । वह एक हजार योजन लम्बा, पांचसौ योजन चौड़ा और दो सौ पचास योजन ऊँचा है । मो इन तीनोंको परस्परमें गुणा करने से १०००४५००४२५०= साढ़े बारह करोड़ योजन घनक्षेत्रफल होता है । इन योजनरूप घनफलोंको यदि प्रदेशोंके प्रमाणकी दृष्टिसे आंका जाये तो वनांगुलको चार वार संख्यातसे गुणा करने पर जितना परिमाण होता है उतने प्रदेश एकेन्द्रिय कमटकी उत्कृष्ट अवगाहनाके होते हैं। इसी तरह घनांगुलको तीन बार संख्यातसे गुणा करनेपर जितना प्रदेशोंका प्रमाण हो उतने प्रदेश दो इन्द्रियकी उत्कृष्ट अवगाहनामें होते हैं । घनांगुलको एक बार संख्यातसे गुणा करनेपर जितना प्रदेशोंका परिमाण हो उतने प्रदेश तेइन्द्रियकी उत्कृष्ट अवगाहनांमें होते हैं । घनांगुटको दो बार संख्यातसे गुणा करनेपर जितना प्रदेशोंका परिमाण हो उनने प्रदेश चौडन्द्रियकी उत्कृष्ट अवगाहनामें होते हैं । और घनांगुलको पांचवार संख्यातमे गुणाकरने पर जितना प्रदेशोंका परिमाण हो उतने प्रदेश पंचेन्द्रियकी उत्कृष्ट अवगाहनामें होते हैं ।। १६७ ॥ अव नारकियोंके शरीरकी ऊंचाई कहते हैं । अर्थ-सातवें नरकमें नारकियोंका शरीर पांचमी धनुप उंचा है । उससे ऊपर ऊपर देहकी ऊंचाई आधी आधी है ।। भावार्थ-माघवी नामक मानवे नरकमें नारकी जीवोंके शरीरकी ऊंचाई अधिकसे अधिक पांचसौ १५ पंचममच्छेगा (?)। २ ल म गया । ३ ब दुति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002713
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorSwami Kumar
AuthorA N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages594
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Spiritual
File Size15 MB
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