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________________ ६४ खामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा [गा० १२७भवन्ति । एकस्मिन् जीवे आहारं गृहति सति अनन्तानन्तजीवाः साधारणं समानं सदृशं समकालं गृह्णन्ति । एकस्मिन् जीवे श्वासोच्छ्रासं गृहति सति अनन्तानन्तजीवाः साधारण सदृशं समकालं श्वासोच्छ्वास गृहन्ति । एकस्मिन् जीवे शरीर गृहति सति अनन्तानन्तजीवाः शरीरं गृह्णन्ति मुञ्चन्ति च । एकस्मिन् जीवति सति अनन्तानन्तजीवा जीवन्ति म्रियन्ते च। ते साधारणजीवाः कथ्यन्ते । कथंभूतानां येषाम् । अनन्तानन्तप्रमाणानाम् । तद्यथा। यत्साधारणजीवानाम् उत्पन्नप्रथमसमये आहारपर्याप्तिः, तत्कार्य चाहारवर्गणायातपुद्रलस्कन्धानां खलरसभागपरिणमनं साधारण सदृशं समकालं च भवति । १ तथा शरीरपयोप्तिः, तत्कार्य चाहारवर्गणायातपुद्गलस्कन्धानां शरीराकारपरिणमनं साधारणं सदृशं समकालं च भवेत् । २। तथा इन्द्रियपर्याप्तिः, तत्काय च स्पर्शनेन्द्रियाकारेण परिणमनम्। ३। भानपानपर्याप्तिः, तत्कार्य चोच्छ्वासनिःश्वासप्रहणं साधारण सदृशं समकालं भवति । ४। तथा गोम्मटसारे साधारणलक्षणं प्रोकं च । आहार, श्वासोच्छास, शरीर और आयु साधारण यानी समान होती है । अर्थात् उन अनन्तानन्त जीवों का पिण्ड मिलकर एक जीवके जैसा हो जाता है अतः जब उनमेंसे एक जीव आहार ग्रहण करता है तो उसी समय उसीके साथ अनन्तानन्त जीव आहार ग्रहण करते हैं। जब एक जीव श्वास लेता है तो उसी समय उसके साथ अनन्तानन्त जीव श्वास लेते हैं। जब उनमेंसे एक जीव मरकर नया शरीर धारण करता है तो उसी समय उसीके साथ अनन्तानन्त जीव वर्तमान शरीरको छोड़ कर उसी नये शरीरको अपना लेते हैं। सारांश यह है कि एकके जीवनके साथ उन सब का जीवन होता है और एकको मृत्युके साथ उन सबकी मृत्यु हो जाती है इसीसे उन जीवोंको साधारण जीव कहते हैं। इसका और भी खुलासा इस प्रकार है-साधारण वनस्पति कायिक जीव एकेन्द्रिय होता हैं । और एकेन्द्रिय जीवके चार पर्याप्तियों होती हैं-आहार पर्याप्ति, शरीर पर्याप्ति, इन्द्रिय पर्याप्ति और श्वासोच्छ्रास पर्याप्ति । जब कोई जीव जन्म लेता है तो जन्म लेने के प्रथम समयमें आहार पर्याप्ति होती है, उसके बाद उक्त तीनों पर्याप्तियाँ एकके बाद एकके क्रमसे होती हैं। आहार वर्गणाके रूपमें ग्रहण किये गये पुद्गल स्कन्धोंका खल भाग और रस भाग रूप परिणमन होना आहार पर्याप्तिका कार्य है । खल भाग और रस भागका शरीर रूप परिणमन होना शरीर पर्याप्तिका कार्य है । आहार वर्गणाके परमाणुओंका इन्द्रियके आकार रूप परिणमन होना इन्द्रिय पर्याप्तिका कार्य है । और आहार वर्गणाके परमाणुओंका श्वासोच्छ्वास रूप परिणमन होना श्वासोच्छ्रास पर्याप्तिका कार्य है। एक शरीरमें रहनेवाले अनन्तानन्त साधारण कायिक जीवोंमें ये चारों पर्याप्तियां और इनका कार्य एकसाथ एक समयमें होता है । गोम्मटसार जीवकाण्डमें साधारण वनस्पति कायका लक्षण इस प्रकार कहा है- 'जहाँ एक जीवके मर जाने पर अनन्त जीवों का मरण हो जाता है और एक जीवके शरीरको छोड़ कर चले जाने पर अनन्त जीव उस शरीर को छोड़ कर चले जाते हैं वह साधारण काय है । वनस्पति कायिक जीव दो प्रकारके होते हैं-एक प्रत्येक शरीर और एक साधारण शरीर । जिस वनस्पतिरूप शरीरका खामी एक ही जीव होता है उसे प्रत्येक शरीर कहते हैं । और जिस वनस्पति रूप शरीरके बहुतसे जीव समान रूपसे खामी होते हैं उसे साधारण शरीर कहते हैं। सारांश यह है कि प्रत्येक वनस्पतिमें तो एक जीवका एक शरीर होता है। और साधारण वनस्पतिमें बहुतसे जीवोंका एक ही शरीर होता है। ये बहुतसे जीव एक साथ ही खाते हैं, एक साथ ही श्वास लेते हैं। एक साथ ही मरते हैं और एक साथ ही जीते १ सर्वत्र 'गोम' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002713
Book TitleKartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorSwami Kumar
AuthorA N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages594
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Spiritual
File Size15 MB
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