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________________ (६६) दश सूक्ष्मेऽपि च द्वयोः नव सप्त सयोगे प्रत्यया भवन्ति। प्रत्ययहीनमन्यूनं अयोगिस्थानं सदा वन्दे।। दस सुहुमे इति पदस्य व्याख्यानं पूर्वगाथायां कृतं, अवि य- अपि च, दुसुद्वयोः एकादशे उपशान्तकषाये द्वादशे क्षीणकषायगुणस्थाने च, णव- नव प्रत्ययाः संभवन्ति। अष्ट मनोवचनयोगा औदारिककाययोग एक एवं ६ ।सत्त सजोगिम्मि पच्चया हुंति-सयोगकेवलिनि सप्त प्रत्ययाः, हुंति - भवन्ति। ते के ? सत्यानुभयमनोवचनयोगा औदारिकतन्मिश्रकार्मणकाययोगा एवं सप्त। पच्चयहीणमणूणं अजोगिठाणं सया वंदेइति, नमस्कुर्वे सदा, किं तत्? कर्मतापन्नं अयोगिकेवलिगुणस्थानं किं विशेषणाञ्चितं? पच्चयहीणं- सप्तपंचाशत्प्रत्ययैर्हीनं रहितं। पुनः किं विशिष्टं? अणूणं- अन्यूनं परिपूर्ण।। ७७॥ इति चतुर्दश गुणस्थानेषु प्रत्ययाः प्रोक्ताः। ____ अन्वयार्थ- (दस सुहुमे) सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान में दस प्रत्यय होते हैं यह पूर्वोक्त गाथा में कहा गया। (दुसु) आगे उपशान्त कषाय और क्षीण कषाय गुणस्थान इन दो गुणस्थानों में (णव) नौ आस्रव होते हैं। (सजोगिम्मि) सयोग केवली गुणस्थान में (सत्त) सात (पच्चया) प्रत्यय (हुति) होते हैं। (पच्चयहीणमणूणं) आस्रवों से रहित (अजोगिठाणं) अयोग केवली को (सया) सदा (वंदे) वंदना करता हूँ। भावार्थ- सूक्ष्म साम्पराय गुणस्थान में दस प्रत्यय होते हैं इसका व्याख्यान पूर्व की गाथा में किया गया। ग्यारहवें उपशान्त कषाय गुणस्थान और क्षीण कषाय गुणस्थान में नौ प्रत्यय होते हैं वे इस प्रकार से हैं- चार मनोयोग, चार वचनयोग और १ औदारिक काययोग इस प्रकार ६सयोगकेवली गुणस्थान में सात प्रत्यय होते हैं वे इस प्रकार से हैं- सत्य मनोयोग, अनुभय मनोयोग, सत्य वचनयोग, अनुभय'चनयोग, औदारिक काययोग, औदारिक मिश्र काययोग इस प्रकार सम्मिलित सात आस्रव होते हैं। समस्त आस्रवों से रहित अयोग केवली की मैं सदा वंदना करता हूँ। इति चतुर्दशगुणस्थानेषु प्रत्ययाः प्रोक्ताः। इस प्रकार १४ गुणस्थानों में आस्रव कहे। पवयणपमा गलक्खणछंदालंकाररहि यहियएण। जिणइंदेण पउत्तं इणमागमभत्तिजुत्तेण॥ ७८॥ प्रवचनप्रमाणलक्षणच्छन्दोऽलङाररहितह्रदयेन। जिनचन्द्रेण प्रोक्तं इदं आगमभक्तियुक्तेन। इणं- सिद्धान्तसारशास्त्रं पउत्तं- प्रोक्तंकेन क; ? जिणइंदेण जिनचन्द्रनाम्ना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002711
Book TitleSiddhantasara
Original Sutra AuthorJinchandra Acharya
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherDigambar Sahitya Prakashan
Publication Year
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
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