SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सामायिकयुग्मे तथा सूक्ष्मे सप्त षडपि तुरीयज्ञानोनाः । परिहारे देशयतौ षट् भणिता असंयमे नवेति।। सामाइयजुम्मे तह सुहमे सग- सामायिकयुग्मे सामायिकच्छेदोपस्थापनासंयमद्विके तथा सुहमे-- सूक्ष्मसाम्परायसंयमे सप्तपयोगा भवन्ति। ते के? मतिश्रुतावधिमनःपर्ययज्ञानोपयोगाश्चत्वारः चक्षुरचक्षुरवधिदर्शनोपयोगास्त्रय एवं सप्त। छप्पि तुरियणाणूणा परिहारे इति, परिहारविशुद्धिसंयमे षडप्युपयोगास्तुरीयमनःपर्ययज्ञानोना मतिज्ञानादित्रयं चक्षुर्दर्शनादित्रयं चेति षट् संभवन्ति। देसजई - दशसंयमे संयमासंयमे, छब्भीणय - षडुपयोगा ये परिहारसंयमोक्तास्त एवोपयोगा भवन्ति। असंजमे णविति-- असंयमे नवोपयोगाः। ते के ? कुमत्यादित्रयं सुमत्यादित्रयं एवं षट् चक्षुरचक्षुरवधिदर्शनोपयोगास्त्रय एवं नव भवन्ति।। ३८॥ ____ अन्वयार्थ ३८ - (सामाइयजुम्मे) सामायिक छेदोपस्थापना संयम में (तह) तथा (सुहमे) सूक्ष्मसाम्पराय संयम में (सग) सात (परिहारे) परिहारविशुद्धि संयम में (तुरियणाणूणा) चौथे ज्ञान अर्थात् मनःपर्यय ज्ञानोपयोग से रहित (छप्पि) छह उपयोग (देसजई) देशसंयम में (छप्) छह उपयोग (असंजमे) असंयम में (णविति) नौ उपयोग (भणिय) कहे गये है। भावार्थ- संयम मार्गणा में सामायिक, छेदोपस्थापना तथा सूक्ष्मसाम्पराय संयम में तीन कुज्ञानोपयोग, केवलज्ञानोपयोग और केवल दर्शनोपयोग को छोड़कर सात उपयोग होते हैं अर्थात् मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञानोपयोग चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन और अवधि दर्शनोपयोग ये सात उपयोग होते हैं। परिहार विशुद्धि संयम और देश संयम में मनःपर्यय ज्ञानोपयोग को छोड़कर उपर्युक्त शेष छह उपयोग होते हैं । असंयम में मनःपर्यय ज्ञानोपयोग केवलज्ञानोपयोग और केवल दर्शनोपयोग को छोड़कर शेष नौ उपयोग होते हैं। पणणाण दंसणचउ जहखादे चक्खुदंसणजुगेसु। गयकेवलदुग दंसणगदणाणुत्ता हि अवहिदुगे॥ ३६।। पंचज्ञानानि दर्शनचतुष्कं यथाख्याते चक्षुर्दर्शनयुग्मेषु। गतकेवलद्विकं दर्शनगतज्ञानोक्ता हि अवधिद्विके।। पणणाण दंसणचउ जहखादे यथाख्यातसंयमे मतिज्ञानदिपंचज्ञानोपयोगाः, चक्षुरादिदर्शनोपयोगाश्चत्वार एवमुपयोगा नव भवन्ति। इति संयममार्गणा। चक्खुदंसणजुगेसु चक्षुरचक्षुदर्शनद्वये, गयकेवलदुग- केवलज्ञानदर्शनद्वयरहिता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002711
Book TitleSiddhantasara
Original Sutra AuthorJinchandra Acharya
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherDigambar Sahitya Prakashan
Publication Year
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy