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________________ 2सासादन संदृष्टि नं. 28 पुंवेद आस्रव 55 पुंवेद में 55 आस्रव होते हैं जो इस प्रकार हैं - 5 मिथ्यात्व, 12 अविरति, 15 योग, कषाय 23 (कषाय 16, हास्य आदि 6 नोकषाय एवं पुंवेद) । गुणस्थान मिथ्यात्व आदि 9 होते हैं। गुणस्थान आस्रव व्युच्छित्ति आस्रव आस्रव अभाव | 1. मिथ्यात्व |5[5 मिथ्यात्व 153[5 मिथ्यात्व, 12 अविरति, योग 13 /2[आहारक, आहारकमिश्र (मनयोग4,क्चनयोग4,काययोग5- काययोग औदारिक, औदारिकमिश्र, वैक्रियिक, वैक्रियिकमिश्रऔरकार्मण), कषाय 23 (कषाय 16, नोकषाय 7-हास्य, रति, अरति,शोक, भय,जुगुप्सा, पुवेद] 4[अनंतानुबंधी4 148[12अविरति, योग 13 (मनयोग4, 7 [5 मिथ्यात्व, आहारक, | कषाय] वचनयोग4,काययोग 5-औदारिक, आहारकमिश्रकाययोग) औदारिकमिश्र, वैक्रियिक, वैक्रियिकमिश्र और कार्मण), कषाय 23 (कषाय 16, नोकषाय7 - हास्य, रति, अरति, शोक, भय,जुगुप्सा,पुवेद] 3.मिश्र 41 [उपर्युत48-7 145 मिथ्यात्व, (4अनंतानुबंधी, औदारिकमिश्र, 4अनंतानुबंधी, औदारिकमिश्र, वैक्रियिकमिश्र और कार्मणकाययोग)] आहारक,आहारकमिश्र, वैक्रियिकमिश्रऔर कार्मणकाययोग] 4.अविस्त |9[अप्रत्याख्यान 44[12 अविरति, योग 13 (मनयोग4,11[5 मिथ्यात्व, क्रोधआदि4, बस क्चनयोग 4, काययोग 5-औदारिक, 4अनंतानुबंधी, आहारक, अविरति, औदारिक औदारिकमिश्र, वैक्रियिक, वैक्रियिकमिश्र | आहारकमिश्र काययोग] मिश्र, वैक्रियिक, और कार्मण), अप्रत्याख्यानादि 12 वैक्रियिकमिश्रऔर कषाय, नोकषाय - हास्य, रति, | कार्मणकाययोग] | अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, पुवेद] 5.देशविस्त | 15 [गुणस्थानक्त] [गुणस्थानवत्37-2 (स्त्रीवेद, 20[5 मिथ्यात्व, नपुंसक्वेद)] अनंतानुबंधी आदि कषाय, सअविरति,आहारकद्विक, औदारिकमिश्र, वैक्रियिकद्विक, और कार्मणकाययोग [49] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002706
Book TitleAsrava Tribhangi
Original Sutra AuthorShrutmuni
AuthorVinod Jain, Anil Jain
PublisherGangwal Dharmik Trust Raipur
Publication Year2003
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size4 MB
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