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________________ व्यंजन सन्धि 4. यदि त् के आगे आ, ई, ए आदि हो तो त् के स्थान पर द और क् के आगे आ आवे तो क् के स्थान पर ग् हो जाता है 5. 6. 7. रत् + एत् = णेरदेत् (सूत्र - 3/149) णेरदेत् + आव = णेरदेदाव (सूत्र - 3 / 149 ) व्यञ्जनात् + ईअ = व्यञ्जनादीअ (सूत्र - 3 / 163) लुक् + आवी = लुगावी (सूत्र - 3 / 152) यदि त् के आगे च् हो तो पूर्ववाला त् भी च् हो जाता है---- इत् + च इच्च (सूत्र - 3 / 155 ) एत् + च = एच्च (सूत्र - 3 / 157 ) पदान्तम् के आगे कोई व्यञ्जन हो तो म का अनुस्वार (-) हो जाता है-मानाम् + हिस्सा = मानां हिस्सा (सूत्र - 3 / 168) यदि त वर्ग के बाद ल आवे तो त भी ल हो जाता है त् अदेत् + लुकि = अदेल्लुकि (सूत्र -3/153) पद के अन्तिम न् को स् होता है और न् के स् होने पर उससे पहले 8. जाता है एकस्मिन् + त्रयाणाम् एकस्मिंस्त्रयाणाम् (सूत्र - 3/173) विसर्ग सन्धि 9. यदि विसर्ग से पहले अ या आ के अतिरिक्त इ, ए ओ आदि स्वर हों और विसर्ग के बाद अ आदि स्वर अथवा म्, व्, ह आदि व्यंजन हों तो विसर्ग का र हो जाता है णेः + अत् = णेरत् (सूत्र - 3 / 149 ) भ्रमेः + आडः = = भ्रमेराड: (सूत्र - 3 / 151) प्रौढ प्राकृत--अपभ्रंश रचना सौरभ Jain Education International लग For Private & Personal Use Only (ii) www.jainelibrary.org
SR No.002699
Book TitlePraudh Prakrit Apbhramsa Rachna Saurabh Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2002
Total Pages96
LanguageHindi, Prakrit, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size3 MB
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