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________________ खणि (खण) 7/1 क्षणभर में (हु-हुय-हुयअ) भूकृ 1/1 'अ' स्वा. हुआ (पसण्णअ) भूकृ 1/1 अनि 'अ' स्वा.. प्रसन्न [(धरणि)-(ईस) 1/1] पृथ्वी का मुखिया पसण्णउ धरणिईसु 4. परियाणिवि मंतिएँ-मंतिइँ रायणेहु णिवणंदणु अप्पिउ दिव्वदेह (परियाण+इवि) संकृ (मंति) 3/1 [(राय)-(णेह) 2/1] [(णिव)-(णंदण) 1/1] (अप्प अप्पिअ) भूक 1/1 [[(दिव्व)-(देह) 1/1] वि] जानकर मंत्री के द्वारा राजा के स्नेह को राजा का पुत्र सौंप दिया गया सुन्दर देहवाला अव्यय हे (सम्बोधनार्थक) होहि णरेसर परममित्तु (हो) व 2/1 अक (णरेसर) 8/1 [(परम) वि-(मित्त) 1/1] (अम्ह) 3/1 स (देव) 8/1 (तुहारअ) 1/1 सवि (कल-कलिअ) भूकृ 1/1 (चित्त) 1/1 (हे) नरेश्वर परममित्र मेरे द्वारा हे देव तुहारउ कलिउ तुम्हारा पहचान लिया गया चित्त चितु वणिवयणु वणिक के वचन को सुणेविणु णरवरेण सुनकर राजा के द्वारा [(वणि)-(वयण) 2/1] (सुण+एविणु) संकृ (णरवर) 3/1 (अइपउर) 1/1 वि (पसाअ) 1/1 (पइण्ण) भूकृ 1/1 अनि अइपउरु खूब पसाउ पइण्णु पुरस्कार सार्वजनिक रूप से घोषित किया गया उस (के द्वारा) UN (त) 3/1 सवि 305 अपभ्रंश काव्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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