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________________ कीरइ तहो (कीरइ) व कर्म 3/1 सक अनि (त) 5/1 स (णिवित्ति) 1/1 की जानी चाहिए उससे निवृत्ति णिवित्ति 11. मांस जंगलु असंतु खाते हुए वणु वन (जंगल) 2/1 (अस-असंत) वकृ 1/1 (वण) 1/1 (रक्खम) 1/1 (मार-मारिअ) भूकृ 1/1 (णरअ) 7/1 (पत्त) भूकृ 1/1 अनि रक्खसु मारिउ राक्षस मारा गया णरए नरक पाया 12. मइरापमत्तु [(मइरा)-(पमत्त) भूकृ 1/1 अनि] मदिरा के कारण नशे में चूर हुआ कलहेप्पिणु हिंसइ इट्ठमित्तु (कलह+एप्पिणु) संकृ (हिंस) व 3/1 सक [(इ8)-(मित्त) 2/1] झगड़ा करके कष्ट पहुँचाता है प्रिय मित्र को 13. रच्छहे पडेइ उब्भियकरु (रच्छा ) 6/1 (पड) व 3/1 अक [(उन्भ-उब्भिय) संकृ-(कर) 2/1] (विहलंघल) 1/1 वि (णड) व 3/1 अक राजमार्ग पर गिर जाता है ऊँचा करके, हाथ को उन्मत्त शरीरवाला नाचता है विहलंघलु णडेइ 14. होता होते हुए (हो-होंत) वकृ 1/2 यह विधि-अर्थ में भी प्रयुक्त होता है, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 121 श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 248 कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-135) कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-134) 265 अपभ्रंश काव्य सौरभ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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