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________________ दुःखी करनेवाले दूहवियहि णवजोव्वणेण नवयौवन से क्या फलिएण (दूहव-दूहविय) भूक 7/1 (णव) वि-(जोव्वण) 3/1 (क) 1/1 सवि (फल-फलिअ) भूक 3/1 अव्यय (कडुअ) 3/1 वि 'अ' स्वार्थिक (वण) 3/1 फले हुए कडुएं वणेण कड़वे वन से 10. जे नहीं करंति सुहासियई मंतिहि भासियाई णयवयण ताह णरिंदह (ज) 1/2 सवि अव्यय (कर) व 3/2 सक (सुहासिय) 2/2 (मंति) 3/2 (भास-भासिय) भूक 2/2 (णय)-(वयण) 2/2 (त) 6/2 सवि (णरिंद) 6/2 (रिद्धि) 1/1 . करते हैं सुन्दर वचनों को मंत्रियों द्वारा कहे हुए नीति-वचनों को उन राजाओं की रिद्धि कहाँ से अव्यय कओ कहिं सीहासणछत्तई कहाँ अव्यय (सीहासण)-(छत्त) 1/2 (रयण) 1/2 सिंहासन, छत्र रणयइ रत्न 1. कभी-कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-135) अपभ्रंश काव्य सौरभ 244 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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