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________________ जाया E जे परदविणहारिणो कलहकारिणो (जाय) भूकृ 1/2 अनि (ज) 1/2 सवि [(पर) वि-(दविण)-(हारी) 1/2 वि] (कलहकारी) 1/2 वि (त) 1/2 सवि (जय) 7/1 (राय) 1/2 परद्रव्य को हरनेवाला कलह करनेवाले (कलहकारी) जयम्मि जगत में राजा राया वुडउ जबुउ सिव (वुड्डअ) 1/1 वि 'अ' स्वार्थिक (जंबुअ) 1/1 'अ' स्वार्थिक (सिव) 1/1 (सद्द) व कर्म 3/1 सक (एअ) 3/1 स अव्यय (अम्ह) 4/1 स (हासअ) 1/1 'अ' स्वार्थिक (दा+इज्ज) व कर्म 3/1 सक बूढ़ा सियार समृद्धि बुलाई जाती है इससे मानो सद्दिज्जइ णाई मेरे लिए हँसी हासउ दिज्जइ दी जाती है बलवंतु बलवान चोर चोरु (ज) 1/1 सवि (बलवंत) 1/1 वि (चोर) 1/1 (त) 1/1 सवि (राणअ) 1/1 'अ' स्वार्थिक (णिब्बल) 1/1 वि सो वह राणउ राजा णिब्बलु निर्बल अव्यय फिर पुणु किज्जइ.. णिप्राणउ (कि) व कर्म 3/1 सक (णिप्राणअ) 1/1 वि किया जाता है निष्प्राण 4. छीना जाता है हिप्पइ मृगहु (हिप्पइ) व कर्म 3/1 सक अनि (मृग) 6/1 पशु का 227 अपभ्रंश काव्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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