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________________ पञ्चहँ पाँचों में से एक्कु एक (पञ्च) 6/2 वि (एक्क) 2/1 वि अव्यय (दिव्व) 2/1 वि दिव्यु आरोप की शुद्धि के लिए की जानेवाली परीक्षा को धारण करें (धर) विधि 2/1 सक 83.5 उसको णिसुणेवि रहुवइ परिओसिउ (त) 2/1 सवि (णिसुण+एवि) संकृ (रहुवइ) 1/1 (परिओस) भूकृ 1/1 अव्यय (हो) विधि 3/1 अक (हक्कारअ) 1/1 (पेस-पेसिअ) भूकृ 1/1 एव सुनकर रघुपति (राम) सन्तुष्ट हुए इसी प्रकार होवे हरकारा (बुलानेवाला) भेजा गया होउ हक्कारउ पेसिउ 9. चडु पुप्फ-विमाणे भडारिए मिलु पुत्तहँ' पइ-देवरहँ' (चड) विधि 2/1 सक [(पुप्फ)-(विमाण) 7/1] (भडारिआ) 8/1 अनि (मिल) विधि 2/1 सक (पुत्त) 6/2 [(पइ)-(देवर) 6/2] अव्यय (अच्छ) व 3/2 अक चढ़ें पुष्पक विमान पर हे पूजनीया मिलो पुत्रों का (पुत्रों को) पति और देवरों को सहुँ साथ अच्छहिँ रहती है 1. कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-134) यहाँ बहुवचन का एकवचन के अर्थ में प्रयोग किया गया है। 2. अपभ्रंश काव्य सौरभ 194 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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