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________________ 83.3 उसको णिसुणेवि चवइ (त) 2/1 स (णिसुण+एवि) संकृ (चव) व 3/1 सक (रहुणन्दण) 1/1 (जाण) व 1/1 सक रहुणन्दणु जाणमि सीयहे सुनकर कहता है (कहा) रघुनन्दन जानता हूँ सीता के (सीया) 6/1 तणउ सम्बन्धक परसर्ग अव्यय (सइत्तण) 2/1 सइत्तणु सतीत्व को 2. जाणमि जिह हरिवंसुप्पण्णी (जाण) व 1/1 सक जानता हूँ अव्यय जिस प्रकार [(हरि)+(वंस)+(उप्पण्णी)] हरिवंश में उत्पन्न हुई [(हरि)-(वंस)-(उप्पण्ण-(स्त्री) उप्पण्णी) भूक 1/1 अनि] (जाण) व 1/1 सक जानता हूँ अव्यय जिस प्रकार [(वय)-(गुण)-(संपण्ण-- (स्त्री) संपण्णी) व्रत और गुण से युक्त भूकृ 1/1 अनि] जाणमि जिह वय-गुण-संपण्णी 3. जाणमि जिह (जाण) व 1/1 सक अव्यय [(जिण)-(सासण) 7/1] (भत्ति) 1/1 (जाण) व 1/1 सक जानता हूँ जिस प्रकार जिनशासन में जिण-सासणे भत्ती भक्ति जाणमि जिह जानता हूँ जिस प्रकार अव्यय मेरे लिए महु सोक्खुप्पत्ती (अम्ह) 4/1 स [(सोक्ख)+(उप्पत्ती)] [(सोक्ख)-(उप्पत्ति) 2/1] सुख की उत्पत्ति को अपभ्रंश काव्य सौरभ 188 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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