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________________ उम्माहिज्जन्तउ (उम्माह+इज्ज+न्त+अ) वकृ कर्म 1/1 'अ' स्वा. वियोग में व्याकुल किये जाते हुए क्षण खण (खण) 1/1 अव्यय अव्यय नहीं थक्कइ थकता है नाम (को) णामु (थक्क) व 3/1 अक (णाम) 2/1 (लय-लयन्त-लयन्तअ) वकृ 1/1 'अ' स्वा. लयन्तउ लेता हुआ उव्वेल्लिज्जइ गिज्जइ लक्खणु उछाला जाता है गाया जाता है (उव्वेल्ल+इज्ज) व कर्म 3/1 सक (गा+इज्ज) व कम 3/1 सक (लक्खण) 1/1 [(मुरव)-(वज्ज) 7/1] (वाअ) व कर्म 3/1 सक (लक्खण) 1/1 मुरव वज्जे लक्ष्मण मुदंगवाद्य में बजाया जाता है लक्ष्मण वाइज्जइ लक्खणु 3. सुइ-सिद्धन्त-पुराणेहिँ [(सुइ)-(सिद्धन्त)-(पुराण) 3/2] लक्खणु ओङ्कारेण पढिज्जइ (लक्खण) 1/1 (ओङ्कार) 3/1 (पढ) व कर्म 3/1 सक (लक्खण) 1/1 श्रुति, सिद्धान्त और पुराणों द्वारा लक्षण ओंकार से पढ़ा जाता है लक्खणु लक्षण अन्य अण्णु वि . पादपूरक जो-जो जं जं किंपि स-लक्खणु लक्खण-णामें (अण्ण) 1/1 वि अव्यय (ज) 1/1 सवि (क) 1/1 वि (स-लक्खण) 1/1 वि [(लक्खण)-(णाम) 3/1] कुछ भी लक्षणसहित लक्ष्मण नाम से 141 अपभ्रंश काव्य सौरभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .
SR No.002690
Book TitleApbhramsa Kavya Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages428
LanguageApbhramsa, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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