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________________ ग्रन्थकर्ताका परिचय । (पूर्व संस्करण से) पार्श्वपुराणके रचयिता कविवर भूधरदासजी आगरे के रहनेवाले खण्डेलवाल जैन थे । संवत् १७८९ में आपने इस ग्रन्थको समाप्त किया है । इसके पहले आप संवत् १७८१ में जैनशतक बना चुके थे । जैनशतकमें १०७ कवित्त , सवैया , दोहा और छप्पय हैं । इसका प्रत्येक पद्य अपने अपने विषयको स्वतंत्र रूपसे कहनेवाला है । इसे एक प्रकारका सुभाषित-संग्रह कहना चाहिए । बहुत ही सुन्दर रचना है । जैन समाजमें इसका अच्छा प्रचार है । जैन शतकके सिवाय आपका एक ग्रन्थ पदसंग्रह है जिसमें लगभग ८० पद और स्तुतियाँ आदि हैं | जान पड़ता है, यह आपकी जुदा जुदा समयकी रचनाओंका संग्रह है जो किसीने पीछेसे कर दिया है । इसमें के कोई कोई पद बड़े ही हृदयग्राही और प्रभावशाली हैं । वे आपके एक अच्छे कवि होनेकी साक्षी देते हैं । हिन्दीके जैन साहित्यमें पार्श्वपुराण ही एक ऐसा चरितग्रन्थ है, जिसकी रचना उच्चश्रेणीकी है, जो वास्तवमें पढ़ने योग्य है और जो किसी संस्कृत प्राकृत ग्रन्थका अनुवाद करके नहीं किन्तु स्वतंत्ररूपसे लिखा गया है । लगभग १०-११ वर्ष के बाद इस ग्रन्थका यह दूसरा संस्करण प्रकाशित किया जाता है । अबकी बार इसके संशोधनमें पहलेकी अपेक्षा विशेष परिश्रम किया गया है । इतने पर भी यदि इसमें कुछ अशुद्धियाँ रह गई हों, तो उनके लिये पाठकगण हमें क्षमा करें । आषाढ़ १९७५ वि. - नाथूराम प्रेमी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002686
Book TitleParshvapurana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhudhardas Kavi, Nathuram Premi
PublisherSanmati Trust Mumbai
Publication Year2001
Total Pages175
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size6 MB
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