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________________ विशेष :- वज्रसेन तीर्थङ्कर का वज्रनाभ नामक पुत्र चक्रवती हुआ। उसने चक्रॉपने को छोड़कर संयम ग्रहण कर तीर्थंकर नामकर्म उपार्जित किया। अत: चक्रवर्ती की लक्ष्मी से तीर्थकर लक्ष्मी अधिक है। ससीमसर्वार्थविमानवासिनः, शिवश्रियः सङ्गममिच्छतोऽपि ते। अभूद्विलम्बस्तदसंस्तुते जने, रिरंसया को न दधाति मन्दताम्॥ ६४॥ अर्थ :- हे नाथ! समीपवर्ती सर्वार्थ विमान वासी तुम्हें मोक्ष लक्ष्मी से मिलन की इच्छा होने पर भी जो विलम्ब हुआ (वह ठीक ही है; क्योंकि) अपरिचित जन से रमण करने की इच्छा से जड़ता को कौन धारण नहीं करता है? अपितु सभी जड़ता को धारण करते हैं। ध्रुवं शिवश्रीस्त्वाय रागिणी यत-स्तटस्थितस्यापि भविष्यदीशितुः। असंस्पृशन्मारविकारजं रजः, स्वसौख्यसर्वस्वमदत्त ते चिरम्॥६५॥ अर्थ :- हे नाथ! निश्चित रूप से मोक्षलक्ष्मी आपके प्रति रागवती है; क्योंकि उसने भविष्य पर प्रभुत्व रखने वाले, कामदेव के विकार से उत्पन्न रज का स्पर्श न करने वाले तुम्हारे समीपवर्ती स्थित होने पर भी चिरकाल तक अपने सुख के सर्वस्व को दिया। अवाप्य सर्वार्थविमानमन्तिकी-भवत्परब्रह्मपदस्तदध्वगः। यदागमस्त्वं पुनरत्र तद् ध्रुवं, हितेच्छया भारतवर्षदेहिनाम्॥६६॥ अर्थ :- हे नाथ! समीप होते हुए मोक्ष पक्ष के पथिक तुम सर्वार्थ विमान को पाकर जो पुनः यहाँ आए, वह निश्चित रूप से भारतवर्ष के प्राणियों के हित की इच्छा से ही आए। विशेष :- तुम सवीर्थ विमान के समीप होने पर भी मोक्ष को नहीं गए, किन्तु लोक के हित की इच्छा से ही यहाँ अवतीर्ण हुए। तदेव भूयात् प्रमदाकुलं कुलं, महीमहीनत्वमुपासिषीष्ट ताम्। क्रियाजनं स्वस्तुतिवादिनं दिनं, तदेव देवाऽजनि यत्र ते जनिः॥६७॥ अर्थ :- हे नाथ! वही कुल हर्ष से व्याप्त हुआ, पृथ्वी महानता से सेवित हुई, उसी दिन ने लोगों से अपनी प्रशंसा कराई, हे देव जिस कुल में, जिस दिन में आपका जन्म हुआ। अमी धृताः किं पविचक्रवारिजा-सयः शये लक्षणकोश दक्षिणे। शचीशचक्रयच्युतभूपसम्पद-स्त्वया निजोपासकसाच्चिकीर्षता॥६८॥ अर्थ :- हे लक्षणों के भण्डार! क्या आपने इन्द्र, चक्रवर्ती, वासुदेव और राजा को (३२) [जैन कुमारसम्भव महाकाव्य, सर्ग-२] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002679
Book TitleJain Kumarsambhava Mahakavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayshekharsuri
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages266
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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