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________________ परिचय । रक्खी गई उन्हें हाथोंसे टटोल कर इस युवकने उन सब पुस्तकोंके नाम बतला दिये । डाक्टर पिटर्सनने इस युवककी, इस प्रकार आश्चर्य-भरी स्मरण-शक्ति और मानसिक शक्तिको देख कर इसे बहुत बहुत धन्यवाद दिया और जैन समाजकी ओरसे सुवर्ण पदक प्रदान किया।" इस प्रकार श्रीमद् राजचंद्रकी जब मात्र १९ वर्षकी अवस्था थी तब बम्बईकी जनताको इनका परिचय मिला । उस समय सर चार्ल्स सारजंट बम्बई-हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस् थे । वे श्रीमद् राजचंद्रकी इस शक्तिको देख कर बहुत खुश हुए । इसके बाद भी श्रीमद् राजचंद्रके साथ आपका बहुत कुछ समागम होता रहा । सुना जाता है कि सारजंट महोदयने श्रीमद् राजचंद्रसे एक बार इंगलैण्ड चलनेके लिए भी आग्रह किया था; परंतु ये चार्ल्स महोदयकी इच्छाके अनुकूल न हुए। ___ उन्होंने सर चार्ल्सका कहना क्यों स्वीकार नहीं किया, इसका कारण वे लोग तो अच्छी तरह जानते हैं जिनका कि उनके साथ घनिष्ट सम्बंध रहा है या जो उनकी प्रकृतिसे परिचित हैं। परन्तु जिन लोगोंका श्रीमद् राजचंद्रसे परिचय नहीं है उनकी उत्कण्ठाकी बहुत कुछ परितृप्ति राजचंद्रके प्रकाशित लेख आदि यथेष्ट साधनोंके अन्वेषणसे हो सकेगी । लगभग इसी समयमें श्रीमद् राजचंद्रने जो 'मोक्षमाला' नामकी पुस्तक प्रकाशित की थी, उसमें उन्होंने अपने जीवनके 'सामान्य मनोरथ' पर विचार किया था। उसके देखनेसे जान पड़ता है कि उनकी प्रवृत्ति किसी दूसरे ही रास्ते पर जा रही थी। अपने उन मनोरथों पर उन्होंने एक छोटीसी कविता लिखी थी । उसमें लिखा है_ "मोहनीय-भावोंके वश होकर मैं पर-स्त्रियोंको न देखू; निर्मल ता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002678
Book TitleAtmasiddhi in Hindi and Sanskrit
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
AuthorUdaylal Kasliwal, Bechardas Doshi
PublisherMansukhlal Mehta Mumbai
Publication Year
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Soul, Spiritual, & Rajchandra
File Size9 MB
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