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________________ १०० श्रीमद् राजचन्द्र इस बात माननेमें कोई बाधा नहीं कि वेद, जैन तथा अन्य और सब धर्मों या मतोंके भाव अनादि हैं । तब विवाद किस बातका ? परन्तु फिर भी हम सबको इस बात पर विचार करना चाहिए कि इन सब मतों या धर्मों में विशेष बलवान् - सत्य - विचार किसके हैं । ९ वाँ प्रश्न - "वेदोंको किसने बनाया ? वे अनादि हैं ? और अनादि हैं तो अनादि किसे कहते हैं ? " उत्तर- (१) वेद बहुत पुराने जान पड़ते हैं । ( २ ) पुस्तक के रूपमें कोई शास्त्र अनादि नहीं हो सकता; और उनमें कहे गये अर्थ रूपसे सब ही शास्त्र अनादि हैं; क्योंकि उन उन अभिप्रायोंको जुदे जुड़े रूपमें जुदे जुदे लोग कहते आये हैं । हिंसा धर्म भी अनादि है और अहिंसा धर्म भी अनादि है । मात्र विचार उसकी उपयोगिताके संबंध में करना है कि जीवोंके लिए हितकारी क्या है । अनादि तो दोनों ही हैं; परन्तु बात यह है कि कभी किसीका बल बढ़ जाता है और कभी किसीका बल घट जाता है । १० वाँ प्रश्न “ गीताको किसने बनाया ? वह ईश्वरकी बनाई हुई तो नहीं है ? और जो ईश्वरकी बनाई बतलाई जाय तो उसके लिए प्रमाण क्या है ?" उत्तर ( १ ) ऊपर दिये हुए उत्तरोंसे इस प्रश्नका कुछ कुछ समाधान हो सकता है, यदि ईश्वर-कृतका अर्थ ज्ञानी - पूर्णज्ञानी किया जाय । परन्तु यदि ईश्वरका स्वरूप नित्य, अक्रिय और आकाशकी तरह व्यापक माना जाय तो उसके द्वारा ऐसी पुस्तकोंका रचा जाना संभव नहीं हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002678
Book TitleAtmasiddhi in Hindi and Sanskrit
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
AuthorUdaylal Kasliwal, Bechardas Doshi
PublisherMansukhlal Mehta Mumbai
Publication Year
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Soul, Spiritual, & Rajchandra
File Size9 MB
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