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________________ प्रस्तावना देनेका यहां अवसर नहीं है। उसके लिये तो इन पंक्तियों के लेखकका लिखा हुआ स्वामी समन्तभद्र' नामका वह विस्तृत निवन्ध ( इतिहास ) देखना चाहिये जो माणिकचन्द्र दि० जैनप्रन्थमालामें प्रकाशित रत्नकरण्डश्रावकाचारके साथ, ८४ पेजोंकी प्रस्तावनाके अनन्तर,२५२ पृष्ठोंपर जुदा ही अंकित है और जो विषय-सूची तथा अनुक्रमणिकाके साथ अलग भी प्रकाशित हुआ है। यहाँ संक्षेपमें सिर्फ इतना कह देना ही पर्याप्त होगा कि, जैन समाजके प्रतिभाशाली प्राचार्यों,समर्थ विद्वानों और सुपूज्य महात्माओं में स्वामी समन्तभद्रका प्रासन बहुत ऊँचा है। वे रयाद्वाद-विधाके नायक थे, एकान्त-पक्षके निर्मूलक थे,अबाधित शक्ति थे, सातिशय योगी थे, सातिशय वादी तथा वाग्मी' थे। कवि एवं कविब्रह्मा थे, उत्तम गमक' थे, सद्गणोकी मूर्ति थे, प्रशान्त थे, गम्भीर थे, उदारचेता थेसिद्धसारस्वत थे, हित-मितभाषी थे, लोकके अनन्यहितैषी थे, विश्वप्रेमी थे, परहितविरत थे, अकलंक-विद्यानन्दादि-जैसे बड़े-बड़े आचार्यों तथा महान विद्वानोंसे स्तुत्य एवं वन्द्य थे और जैन-शासनके अनुपम घोतक थे, प्रभावक थे और प्रसारक थे। एक शिलालेख में उन्हें 'जिनशासनका प्रणेता तक लिखा है और दूसरे शिलालेख' में भगवान् महावीरके तीर्थकी हजारगुणी वृद्धि करते १ जो अपनो वाक्पटुता तथा शब्द-चातुरी से दूसरों को रंजायमान करने अथवा अपना प्रेमो बना लेनेमें निपुण हो उसे 'वाग्मी' कहते हैं। २ जो दूसरेकी कृतियोंके मर्मको समझने-समझानेमें प्रवीण हो उसे 'गमक' कहते हैं। ३ श्रवणबेलगोलका शिलालेख नं० १०८ (२५८) ४ यह वेलुरताल्लुकेका शिलालेख नं० १७ है, शक सं० १०५६ में उत्कीण हुआ है और इस समय रामानुजाचार्य-मन्दिरके बहात के अन्दर सौम्यनायकी मन्दिरको छतमें लगा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002677
Book TitleStutividya
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
Author
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1912
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, Worship, P000, & P015
File Size9 MB
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