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________________ स्तुतिविद्या ६१ भावार्थ – संसारमें दुःख प्राप्तिके मुख्य दो कारण हैं एक कषाय और दूसरा अज्ञान । हमारे आराध्यदेव वीतराग हैं - कषायरहित हैं और सर्वज्ञ भी हैं - अज्ञानसे रहित हैं अर्थात् दुःखके दोनों कारणोंसे रहित हैं - अनन्त सुख सम्पन्न हैं । जो भव्यजीव सच्चे हृदय से उनकी भक्ति करता है वह भी तंदुरूप होनेसे तत्कालमें सुखका अनुभव करने लगता है । अतः इस श्लोक में आचार्य समन्तभद्रने सुखाभिलाषी जीवोंको सुखप्राप्तिका उपाय बतलाया है। वह यहीं कि भगवान् विमलनाथको पूजो और नमस्कार करो । ।। ५० ।। ( द्वयक्षरपादाभ्यासयमकः १ ) ततोमृतिमतामीमं तमितामतिमुत्तमः । मतोमातातिता तो. तमितामतिमुत्तमाः ॥ ५१ ॥ तोमृतीति द्वितीयपादोभ्यस्तः पुनरुक्तः तकार मकारयोरेवास्तित्वं नान्येषाम् । यतस्ततो भवत्ययं द्वयक्षरपादाभ्यासयमकः । विमल इत्यनुवत्त ते । ततस्तस्मादहं विमलं अमृतिं मरणवर्जितम् । श्रतामि सततं गच्छामि । इमं प्रत्यक्षवचनम् । तमिता विनाशिता. श्रमतिः श्रज्ञानं येनासौ तमितामतिः तं तमितामतिम् । उत्तमः प्रधानः यतस्त्वमिति सर्वत्र सम्बन्धः । मतः पूजितः । श्रमाता श्रहिंसकः । प्रतिता सततगतिरह मिति सम्बन्धः । तत्तु प्रेरितुम् । तमितां श्रमस्व रूपम् । श्रति पूज्य । मुत् हर्षः यस्यासौं प्रतिमुत्, सर्वे इमे प्रतिमुदः, एतेषां मध्ये श्रयमतिशयेन श्रतिमुत्प्रतिमुत्तमः किमुक्त' भवति - यतो भवतः प्रणामादक्रमं क्षेमं क्रमते स्तोतॄणाम् ततोऽहमुत्तमः सन् अति : १ यह श्लोक सिर्फ 'त' और 'म' इनदो अक्षरोंसे बनाया गया है। तथा इसका दूसरा और चौथा पाद एक समान हैं इसलिये इसमें व्यंजनचित्र और यमक कंकार है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002677
Book TitleStutividya
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
Author
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1912
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, Worship, P000, & P015
File Size9 MB
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