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________________ सम्भवतः इन्हीं गर्ग के वंश में ऋषिपुत्र हुए होंगे। इनका नाम भी इस बात का साक्षी है कि यह किसी मुनि के पुत्र थे । ऋषिपुत्र का वर्तमान में एक निमित्तशास्त्र उपलब्ध है । इनके द्वारा रची गयी एक संहिता का भी मदनरत्न नामक ग्रन्थ में उल्लेख मिलता । इन आचार्य के उद्धरण बृहत्संहिता की भट्टोत्पली टीका में भी मिलते हैं । ऋषिपुत्र का समय वराहमिहिर के पूर्व में है । इन्होंने अपने बृहज्जातक के २६ वें अध्याय के ५ वें पद्य में कहा है- मुनिमतान्यवलोक्य सम्यग्धोरों वराहमिहिरो रुचिरां चकार ।" इसी परम्परा में ऋषिपुत्र हुए हैं। ऋषिपुत्र का प्रभाव वराहमिहिर की रचनाओं पर स्पष्ट लक्षित होता है । उदाहरण के लिए एक-दो पद्य दिये जाते हैंससलोहिवण्णहोवरि संकुण इत्ति होइ णायव्वो । संगामं पुण घोरं खग्गं सूरो णिवेदेई ॥ — ऋषिपुत्र शशिरुधिरनिभे भानौ नमःस्थले भवन्ति संग्रामः । - वराहमिहिर जैन आसोज्जगद्वन्द्यो गर्गनामा महामुनिः । तेन स्वयं हि निर्णीतं यं सत्पाशात्रकेवली ॥ एतज्ज्ञानं महाज्ञानं जैनर्षिभिरुदाहृतम् । प्रकाश्य शुद्धशीलाय कुलीनाय महात्मना ॥ प्रथमाध्याय Jain Education International जे दिट्ठभुविरसपण जे दिट्ठा सदसंकुलेन दिट्ठा वऊसट्ठिय ऐण कहमेणकत्ताणं । — ऋषिपुत्र भौमं चिरस्थिरभवं तच्छान्तिभिराहृतं शममुपैति । नामसमुपैति मृदुत भरति न दिव्यं वदन्त्येके ॥ - वराहमिहिर उपर्युक्त अवतरणों से ज्ञात होता है कि ऋषिपुत्र की रचनाओं का वराहमिहिर के ऊपर प्रभाव पड़ा है । सूत्र संहिता विषय की प्रारम्भिक रचना होने के कारण ऋषिपुत्र की रचनाओं में विषय की गम्भीरता नहीं है । किसी एक ही विषय पर विस्तार से नहीं लिखा है, रूप में प्रायः संहिता के प्रतिपाद्य सभी विषयों का निरूपण किया है । शकुनशास्त्र का निर्माण इन्होंने किया है, अपने निमित्तशास्त्र में इन्होंने पृथ्वी पर दिखाई देनेवाले, आकाश में दृष्टिगोचर होनेवाले और विभिन्न प्रकार के शब्द श्रवण द्वारा प्रकट होनेवाले इन तीन प्रकार के निमित्तों द्वारा फलाफल का अच्छा निरूपण किया है । वर्षोत्पात, देवोत्पात, रजोत्पात, उल्कोत्पात, गन्धर्वोत्पात इत्यादि अनेक उत्पातों द्वारा शुभाशुभत्व की मीमांसा बड़े सुन्दर ढंग से इनके निमित्तशास्त्र में मिलती है । बाणधिया ॥ For Private & Personal Use Only ७५ www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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