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________________ २१ ३. शान्ति २. चतुर्विध शान्ति शान्ति को मुख्यत: चार कोटियों में विभाजित किया जा सकता है, जो उत्तरोत्तर कुछ अधिक निर्मलता व सन्तोष लिये हुये हैं। एक शान्ति तो वही है जो ऊपर दर्शा दी गई अर्थात् भोग की नवीन-तीव्र इच्छा के किञ्चित प्रतिकार से, क्षण भर के लिये प्रतीति में आने वाली, इन्द्रिय भोगों सम्बन्धी । दूसरी शान्ति, जो इससे कुछ ऊँची है वह प्राय: अपने कर्तव्य की पूर्ति होने पर कदाचित अनुभव करने में आती है। भोगों से निरपेक्ष होने के कारण वह कुछ पहली की अपेक्षा अधिक निर्मल है। दृष्टान्त द्वारा इसका अनुमान किया जा सकता है। कल्पना कीजिये कि आपकी कन्या की शादी है । नाता करने के दिन से ही आपकी चिन्तायें सामान जुटाने के सम्बन्ध में बढ़ रही हैं, यहाँ तक कि उस दिन जिस दिन कि बारात घर पर आई हुई है आप पागल से बन गये हैं। न आपको चिन्ता नहाने की है न खाने की । आपको यह भी याद नहीं कि आज कमीज.ही नहीं है बदन में । बौखलाये हुए से, सबकी कुछ-कुछ बातें सुनने पर भी, किसी को कुछ उत्तर नहीं दे सकते । “मैं कुछ नहीं जानता भाई, तुम करलो जो चाहो” बस होता था एक वाक्य, जो कभी-कभी निकल जाता था मुँह से। बारात विदा हुई, डोला आंखों से ओझल हआ, घर को लौटे और बैठ गये चबूतरे पर दो मिनिट को कुछ सन्तोष की ठण्डी साँस लेने। आ हा हा ! अब कछ बोझ हल्का हआ.मानो किसी ने मनों की गठरी सर से उतार ली हो। भले ही अगले मिनट में अन्य अनेकों चिन्तायें आकर घेर लें, पर उस क्षण में तो कछ हल्कापन सा, कछ शान्ति सी अवश्य प्रतीति में आई ही; जिसका सम्बन्ध न खाने से था, न धन की उपज से, न अन्य किसी भोग विलास से। फिर भी यह शान्ति क्यों? केवल इसलिये कि गृहस्थ के कर्त्तव्य का एक भार था जो आज हल्का हो गया। तीसरी शान्ति का दृष्टान्त सुनिये । कल्पना कीजिये कि आप बस में चले जा रहे हैं । बस रुकी कुछ व्यक्ति चढ़ गये और कुछ रह गये । एक व्यक्ति चलती गाड़ी में चढ़ने लगा, डण्डा हाथ में न आया, गिर पड़ा, सर फूट गया, सारा शरीर छिल गया, लहुलुहान हो गया और बस रुकी। सारे यात्री उतर गये और घायल व्यक्ति को घेर कर खड़े हो गये । कोई कण्डक्टर को धमकाने लगा और कोई ड्राईवर को गालियाँ देने लगा। परन्तु आपका ध्यान केवल उस व्यक्ति की ओर था। करुणा के मारे आप अपना काम भी भूल गये । एक टैक्सी रोकी और उसे उसमें डालकर आप हस्पताल ले गये। डाक्टर से कहा कि जो खर्चा लगेगा दूंगा, इसे अच्छा कर दीजिये। तीन दिन तक लगातार सवेरे शाम आप हस्पताल जाते और उस व्यक्ति से प्रेमपूर्वक संभाषण करते हुये आपको एक अपूर्व प्रकार की शान्ति का अनुभव होता। तीन दिन पश्चात् यह निर्णय हो जाने पर कि उसकी हालत अब बहुत अच्छी है और यह खतरे से निकल चुका है, आपने सन्तोष की सांस ली। इस प्रकार प्राणियों की नि:स्वार्थ सेवा से उत्पन्न होने वाली यह तीसरी शान्ति, दूसरी की अपेक्षा बहुत स्वच्छ है । यह उसकी अपेक्षा अधिक स्थायी भी है। यहाँ भी नि:स्वार्थता है और भोगाभिलाष का अभाव है । दूसरी की भाँति कर्तव्य परायणता से उत्पन्न हई है। पर यहाँ आपका कर्तव्य पाँच व्यक्तियों के कदम्ब में सीमित न रहकर सारे विश्व में व्याप गया है। आपकी यह व्यापक-दृष्टि ही इस शान्ति की उज्ज्वलता का कारण है । अब चौथी शान्ति की बात सुनिये । वास्तव में उसका दृष्टान्त सम्भव नहीं है क्योंकि दृष्टान्त उसी वस्तु का दिया जा सकता है जो कि जानी देखी हो । परन्तु इस जाति की शान्ति का दर्शन आप को अब तक नहीं हुआ है । अत: इसके प्रति संकेतमात्र दिया जा सकता है। वह अकथनीय है, केवल अनुभवनीय है। इतना मात्र इसके सम्बन्ध में अवश्य अनुमान कराया जा सकता है कि तीसरी कोटि से भी अनन्त गुणी है इसकी निर्मलता । और उसका कारण भी है उसकी अपेक्षा अनन्तगणी साम्यता, निरभिलाषिता तथा दष्टि की व्यापकता। यद्यपि व्याख्या करते समय इस शान्ति का वर्णन निषेध के आश्रय पर ही किया जाना सम्भव है, जैसे कि “जहाँ चिन्ताओं व अभिलाषाओं का अथवा विकल्पों व बुद्धियों का अभाव होता है, वहाँ ही वह शान्ति है।" परन्तु इसके साथ में रहने वाले साम्यता व व्यापकता के विशेषण इसमें कुछ विचित्रता बता रहे हैं। यह शांति वास्तव में सुषप्तिवत् केवल अभावात्मक नहीं है बल्कि कुछ सद् भावात्मक है। नि:स्वप्न दशा में भी निर्विकल्पता होती अवश्य है पर उसका कारण तो है वह अन्धकार जिसमें अन्त:करण शून्यवत् हो जाता है, क्योंकि उस समय वहाँ कुछ दिखाई देता ही नहीं। पदार्थों का ही नहीं बल्कि ज्ञान के भास का या चित्प्रकाश का भी अभाव हो जाता है वहाँ, परन्तु जिस शान्ति की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002675
Book TitleShantipath Pradarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year2001
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size10 MB
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