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________________ सौ पद के वास्तु में ब्रह्मा सोलह पद का ऊपर के कोने के आठ देव डेढ़ २ पदके, अर्यमादि चार देव आठ आठ पद के और मध्य कोने के आप आपवत्स आदि आठ देव दो २ पद के, तथा बाकी के देव एक २ पद के हैं । Jain Education International वरकी गृह प्रकरणम् दि अ शै कु भ मु ना से पापा ܀ प पा पृथ्वीधर आप अपिक्त्म, रुद्र रुद्रदास) सौपदका वास्तु चक्र ज इं सू # अर्थमा उनपचास पद के वास्तु का स्वरूप ब्रह्मा भृ मैत्रमा शे अ व पु सु नं For Private & Personal Use Only सावित्र सविता ( ६६ ) X वैवस्वत गृ य hy जय विदारिका अ प वि ग YZ पि "वेदांशो विधिरर्यमप्रभृतयत्र्यंशा नव स्वष्टकं, कोणेतोऽष्टपदार्द्धकाः परसुराः षद्मा गहीने पदे । वास्तोर्नन्दयुगांश एवमधुनाष्टांशैश्चतुःषष्टिके, सन्धेः सूत्रमितान् सुधीः परिहरेद् भित्तिं तुलां स्तंभकान् ॥” www.jainelibrary.org
SR No.002673
Book TitleVastusara Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1936
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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