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________________ ( २८ ) मुख्य घर और अलिंद की पहिचान वास्तुसारे जं दीहवित्थराई भणियं तं सयल मूलगिहमाणं । सेसमलिदं जाणह जहत्थियं जं बहीकम्मं ॥४६॥ श्रोवरयसालकक्खो - वराईयं मूलगिहमिं सव्वं । यह मूलसालमज्झे जं वट्टइ तं च मूलगिहं ॥४७॥ मकान की जो लंबाई और विस्तार कहा है, वह सब मुख्य घर का माप समझना चाहिये । बाकी जो द्वार के बाहर भाग में दालान आदि हो वह सब अलिंद समझना चाहिये | दीवार के भीतर पट्टशाला ( मुख्य शाला ) और कक्षा शाला ( मुख्य शाला के बगल की शाला ) यदि सब मूल घर जानना अर्थात् मूलशाला के मध्य में जो हों वे सब मूल घर ही जानना चाहिये ॥४६-४७ ॥ अलिंद का प्रमाण गुलसत्तहियस उदए गब्भे य हवइ पण सीई । गणियासारिदी इक्किकगईई इ परिमाणं ॥ ४८ ॥ उदय (ऊंचाई) में एक सौ सात अंगुल, गर्भ में पिचासी अंगुल और क्षेत्र जितना ही लंबाई में यह प्रत्येक अलिंद का माप समझना चाहिये ||४८ || शाला और अलिंद का प्रमाण राजवल्लभ में कहा है कि - Jain Education International " व्यासे सप्ततिहस्तवियुक्ते, शालामानमिदं मनुभक्ते । पंचत्रिंशत्पुनरपि तस्मिन्, मानमुशन्ति लघोरिति वृद्धाः #1 घर का विस्तार जितने हाथ का हो, उसमें ७० हाथ जोड़ कर चौदह से भाग दो, जो लब्धि श्रवे उतने हाथ का शाला का विस्तार करना चाहिये । शाला का विस्तार जितने हाथ का हो, उसमें ३५ जोड़ कर चौदह से भाग दो, जो लब्धि वे उतने हाथ का अलिंद का विस्तार करना । For Private & Personal Use Only " www.jainelibrary.org
SR No.002673
Book TitleVastusara Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1936
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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