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________________ नि० ५१०] उपोद्घाते कालद्वारे सामाचारी। एगग्गस्स पसंतस्स न होंति इरियाझ्या गुणा होति । गंतव्वमवस्सं कारणंमि आवस्सिया होइ ॥ आवस्सिया उ आवस्सएहिं सव्वेहि जुत्तजोगिस्स । मणवयणकायगुतिंदियस्स आवस्सिया होइ ॥ सेज्जं ठाणं च जहिं चेएइ तर्हि निसीहिया होइ । जम्हा तत्थ निसिद्धो तेणं तु निसीहिया होइ । सेज्ज ठाणं च जदा चेतेति तया निसीहिया होइ । जम्हा तदा निसेहो निसेहमइया च सा जेणं ॥ आवस्सियं च गितो जं च अईतो निसीहियं कुणइ । सेज्जाणिसीहियाए णिसीहियाअभिमुहो होई ।। [ भाष्यम् ] जो होइ निसिद्धप्पा निसीहिया तस्स भावओ होइ । अणिसिद्धस्स निसीहिय केवलमेतं हवइ सद्दो ॥ आवस्सयंमि जुत्तो नियमणिसिद्धो त्ति होइ नायव्यो । अहवाऽवि णिसिद्धप्पा णियमा आवस्सए जुत्तो ॥ दारम् ॥ [ भाष्यम् ] आपुच्छणा उ कज्जे पुधनिसिद्धेण होइ पडिपुच्छा । पुव्वगहिएण छंदण णिमंतणा होअगहिएणं ॥ उवसंपया य तिविहा णाणे तह दंसणे चरिते य । दंसणणाणे तिविहा दुविहा य चरित्तअट्टाए । वत्तणा संधणा चेव, गहणं मुत्तत्थतदुभए । वेयावच्चे खमणे, काले आवकहाइ य ॥ संदिट्ठो संदिहस्स चेव संपज्जई उ एमाई । चउभंगो एत्थं पुण पढमो भंगो हवइ मुद्धो । अथिरस्स पुव्वगहियस्स वत्तणा जं इहं थिरीकरणं । तस्सेव पएसंतरणहस्सऽणुसंधणा घडणा ।। गहणं तप्पढमतया मुत्ते अत्थे य तभए चेव । अत्यग्गहणंमि पायं एस विही होइ णायव्यो । मज्जगणिसेज्जअक्खा कितिकम्मुसग्ग बंदणं जेट्टे । भासंतो होई जेट्ठो नो परियारण तो वन्दे ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002658
Book TitleVisesavasyakabhasya Part 2
Original Sutra AuthorJinbhadrasuri
AuthorDalsukh Malvania
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages338
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aavashyak
File Size15 MB
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