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________________ शीलोपदेशमाला-बालाघबोध क हउं, 'पुत्रि! चिंता म कार, तूहनइ भार नारायण होसिई।' इम आश्वासना देई, चित्रगरपाहई' रुक्मिणीनउं रूप लिखावी, नारद-ऋषि द्वारकाई आवी, नारायणनइ मिलिउ। __नारायणि बहुमान देई ऋषि पूछिउं, 'कांई पृथ्वी-माहि कउतिग, आश्चर्य-वात काई दीठीसांभली ?' तिसिइं ऋषिइं प्रस्ताव जाणी ते चित्रामनउ पुट दीधउं । नारायण ते देखी कहिवा लागउ, 'ए' किसिउं देवांगनानउ रूप, किंवा मनुष्यनउ रूप १' इम पूछिह, रुक्मिणीनी वात सर्व कही । वली काहवा लागउ, 'ताहरु जन्म सफल तहीई जि जहाई, ते रुक्मिणी परणेसि । जा ए स्त्री-रत्न ताहरइ घरि नही, तां ताहरउ जन्म फोकट ।' इत्यादि वचन सांभली सांभली, चित्रामनउं रूप जोई जोई, सानुरागपगइ नारायण नारद-प्रति इसिउं कहइ, 'अहो ऋषीश्वर! तिम करउ, जिम रुक्मिणी माहरइ घरि आवइ। जिम कल्पद्रुम सेविउ निःफल न हुइ, तिम तुम्ह आगलि प्रार्थना कीधी निःफल न हुइ' । पछइ नारदि कहिउँ, 'तिम किजिसिई, जिम तुम्हारउ मनोरथ सफल थासिई। पणि एक वार रुक्मी-राजा-समीपि दूत मोकला कन्या मगावीइ' । इम कहो नारद रुक्मोराज-कन्हलि गयउ । पछइ नारायणि दुत मोकली रुक्मो-राजानइ कहाविउं जु, 'ताहरी बहिन रुक्मिणी मुझनइ आपि ।' दूति जई ए वात कही जेतलइ, तेतलइ रुक्मा-राजा रीसाणउ, कहिवा लागउ, 'हूं गोवालाना पुत्रनइ आपणी बहिन नहीं आपउं। मई शिशुपाल-राजानइ बहिन दीधी छइ ।' इसिउं वचन दूत-आगलि कहो दूत पाछउ मोकलिउ। तेतलइ रुक्मिणीनी धा वमाताई रुक्मिणी-आगलि जई कहिउं जु, 'आज तूंहनइ शिशुपालनह दीधी' । पछइ रुक्मिण। 'असमाधि करवा लागी । तिवारई धाविमाताई कहिउं, 'अइमुत्तइ केवलीइ इम कहिउं हंतउं जु"रुक्मिणी नारायणनइ घरि अग्रमहिषी हुस्यइ।” ए वात इम मइ सांभली हंती, अनइ आज तु रुक्मी-राजाइ तूं शिशुपालनइ दीधी। अनइ नारायणि पणि जणं मोकलिउ हूंतु, तेहनउ बोल न मानिउ । हिव स्यूं चालइ ? अथवा वली केवलीना बोल अन्यथा म हइ' । पछइ रुक्मिणो कहइ, 'मइ पणि इणि भवि प्रतिज्ञा कीधा. ज भर्तार. त नारायण. नहींतरि नहीं'। एहवउ निश्चय जाणी, धाविमाताई शिशुपालनउ लग्न-दिवस आवतउ जाणो, छानउ एक दूत नारायग-सनीपि मोकली, वीवाहनउ दिवस जणाविउ जु, 'तुझे आठमिमइ दिनि सही आविज्यो । गुप्तपणइ हूं पणि नागदेवतानइ भुवान नाग पूजिवा-भणी मध्याहि आवर्ड छउं'। ए संकेत-ऊपरि जेतलइ नारायण बलदेव-सहित रथि बइसी प्रछन्न . आविउ, तेतलह शिशुपाल-राजाइ विवाहनी सर्व सामग्री करी कुडिनपुरनइ उद्यानि वनि आविउ, रुक्मी-राजा सामहउ आवी आवासि ऊतारिउ । तेतलइ नारद कलहप्रिय आवी नारायणनइ कहा, 'ताहरउ प्रस्ताव छइ ।' तिसई रुक्मिणी धाविमाता-सहित संकेत-स्थानकि आवी । तेहनउं रूप देखी नारायण चीतवइ, 'जेहवी नारदि वर्णवी हूंती, तेह पाहई अधिक रूप एहनउं दीसइ छह ।' पछइ तिहां जि नारायणि गांधर्व-विवाहि पाणिग्रहण करी रुक्मिणीनइ कहिवा लागउ'", है RL. पाहंति. २. P. मां आना बदले आ पाठ : 'माहरउ जन्म तउ हो सफल जउ ए स्त्री माहरड आवइ । तिसइ ऋषि कहइ...' ३. A जे. ४. P. सखिइं. ५. 1 विलाप. ६. A. जे. ७. P. दूत. ८. A. कहिउ, P. रुक्मण) धाविमातानई कहिउ: L कहि. ९. L. पाहि; A. पांहिते. १०. P. कहिउ, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002655
Book TitleSilopadesamala Balavbodh
Original Sutra AuthorMerusundar Gani
AuthorH C Bhayani, R M Shah, Gitaben
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size14 MB
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