SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भूमिका प्रास्ताविक : प्राचीन गुजराती साहित्यमा गद्यनुं खेडाण पण विपुल प्रमाणर्मा थयेलं ते हवे सिद्ध हकीकत छे. आ गद्यनो मोटो भाग 'बालावबोध' प्रकारनी रचनांभोमां मळे छे. ' 'बालावबोध' एटले संस्कृत - प्राकृत भाषामां रचायेल महत्त्वपूर्ण धार्मिक – शास्त्रीय के उपदेशात्मक ग्रंथोनां जूनी गुजराती भाषामां करेल विवरणात्मक अनुवाद. 'बाल' मां अक्ष के अल्पज्ञ गृहस्थ अने नवदीक्षित के बालवयना मुनिनो अर्थ समायेल छे के जे संस्कृत - प्राकृत भाषाना ज्ञानथी वंचित होय. आवा बालजनोने तेमनी पोतानी भाषामां धर्म-रहस्यनो बोध करावया विद्वान जैन मुनिराजोए अनेक बालावबोधोनी रचना करी छे. बालावबोध-साहित्यनो प्रादुर्भाव छेक ई.स. नीते रमी सदीना उत्तरार्धथी थयेल जोवा मळे छे. पण दीर्घ अने परिष्कृत कही शकाय तेवी कृतिओनी परंपरा चौदमी शताब्दीथी शरू थाय छे. खरतरगच्छीय तरुणप्रभसूरिकृत 'षडावश्यक - बालावबोध' (वि. सं. १४११, ई. स. १३५५ ) ने आवी आद्य रचना कही शकाय. ४ त्यारबाद तपागच्छना प्रसिद्ध आचार्य सोमसुंदरसूरि ( ई. स. १३७४ - १४४३ ) ना रचेला उपदेशमाला, षडावश्यक, योगशास्त्र, आराधनापताका, नत्रतत्त्वप्रकरण, भक्तामर स्तोत्र, षष्टिशतकप्रकरण ब. अनेक ग्रंथो परना महत्त्वपूर्ण बालावबोधो मळे छे. तदुपरांत खरतरगच्छना आचार्य जिनसागरसूरि-प्रणीत षष्टिशतक - बालावबोध ( वि. सं. १५०१, ई. स. १४४५ ) अने बीजा जैन मुनिओ द्वारा केटलीक बाला० रचनाओ मळे छे. पंदरमा शतका प्रारंभमां अनेक ग्रंथो पर विशद बालावबोधो लखनार मेरुसुंदर उपाध्याय आवे छे. तेमना रचेला षष्टिशतक - प्रकरण अने वाग्भटालंकारना बालाववोघो आ पूर्वे प्रगट थई चूक्या छे. अहीं जयकीर्तिमूरि-रचित प्राकृत गाथाबद्ध से लोवएसमाला ( शीलोपदेशमाला ) ना बालावबोधनी संशोधनात्मक आवृत्ति आपी अमे तेमां एकनो उमेरो करीए छीए. आ शीलो. बाला. नुं महत्त्व बे रीते छे - एक तो ते पंदरमी सदीनी गुजराती भाषा पर प्रकाश फेंकवा माटे अत्यंत उपयोगी ने प्रचूर सामग्री पूरी पाडे छे, बीजुं तेमांनी कथाओ कथासाहित्यना इतिहास अने कथानकोनी परंपराना अध्ययन माटे मूल्यवान छे. १. प्राचीन गुजराती गद्य अने बालावबोध साहित्यना वधु परिचय माटे जुओ: गुजराती साहित्यनो इतिहास, गुजराती साहित्य परिषद, ग्रंथ -१ प्रकरण ८ तथा ग्रंथ - २ प्रकरण - २१. २. जैन गूर्जर कविओ, मो. द. देसाई, भा-३, पृ. १५७१-१७०३ ३. " " 35 ४. षडावश्यक - बालावबोध, संपा. डॉ. प्रबोध पंडित, सिंधी जैन ग्रंथमाला, मुंबई १९७६. ५. बन्नेना संग डो. भोगीलाल ज. सांडेसरा, प्रका. म. स, विश्वविद्यालय, वडोदरा, प्रका. वर्ष- क्रमे १९५३, १९७५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002655
Book TitleSilopadesamala Balavbodh
Original Sutra AuthorMerusundar Gani
AuthorH C Bhayani, R M Shah, Gitaben
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages234
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy