SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८- आवी अन्य अनेकार्थ कृतिओ तथा शब्दना चमत्कारवाळी कृतिओ जैनाचार्य रचित काव्यकृतिओमां आवी अन्य पण अनेक कृतिओ छे. ए कृतिओनी नोंध गणितना भूतपूर्व प्रोफेसर भाई हीरालालजी कापडियाए संपादन करेली 'अनेकार्थरस्नमञ्जूषा'मां प्रस्तावनामां आपेल छे. प्रकाशक संस्था आ एक नमूनारूप चमत्कृतिमय कृतिनुं प्रकाशन करीने बीजी एवी कृतिओना सरस शुद्ध सम्पादन प्रकाशन माटे अन्य प्रकाशन संस्था के जैनप्रकाशन संस्थाने अंगुलिनिर्देश करे छे. ९-शतार्थी चित्रकाव्यतुं प्राचीन दृष्टिए मूल्यांकन काव्यनुं स्वरूप जणावनारा काव्यानुशासन वगेरे ग्रन्थोमां कहेवामां आवेल छे के कवि पोताना निजानन्द माटे अथवा यशकीर्ति मेळववा काव्यनी रचना करे छे. लोकोने उपदेश आपवा वा कार्यनी प्रेरणा आपवा पण काव्यनी रचना थाय छे, कोई वळी धन अथवा आजीविकाना निर्वाह माटे काव्यनी रचना करे छे, अथवा आजीविकाना हेतुरूप राजा वगैरेनी खुशामत माटे पण काव्यनी रचना थती देखाय छे. प्रस्तुत अनेकविध अर्थोने बतावनार कृतिना कर्ता श्रीजिनमाणिक्य माटे आ रचनानांबे ज प्रयोजन संभवे छे, एक तो निजानन्द अने बीजु कीर्तियश. बीजा करतां प्रथम प्रयोजन विशेष सुसंगत जणाय छे. कर्ता मुनि छे एटले एने मानसिक चांचल्यनुं निवारण करवू अने एकाग्रता प्राप्त करवी ए वधारे इष्ट होई शके अने आवी रचनाद्वारा ते प्रयोजन जरूर साधी शकाय खलं. उपदेश माटे तो आवां काव्य एकदम निरर्थक छे. जे काव्य सांभळीने श्रोता सहजपणे अनायासे अर्थनो अवगम करी शके एवं ज काव्य उपदेश के प्रेरणादायी निवडी शके, आवां चित्रकाव्य तो प्रदर्शनमा राखेला हाथी सिंह वगेरेनी पेठे मात्र काव्यसंसारमा शोभारूप थई शके अथवा पण्डितो--असाधारण पण्डितोनुं मनोरंजन करी शके. आचार्य हेमचन्द्र तो काव्यानुशासनमा ३०७मे पाने कहे छे के आवां यमकादिवाळां पद्यो काव्यना शरीरमा गड-खुंध-जेवां छे, रसभंगना हेतुरूप छे. जो यमकादिवाळां काव्य आवां होय तो जे कष्टकाव्य छे एटले जेनो अर्थ महाकष्टसाध्य छे ते तो गडुरूप ज होय. वळी आवां कष्टकाव्यन फळ मात्र कविनी ख्याति होई शके. आ अंगे आचार्यश्री कोई कविराज लल्लटन अवतरण टांके छे. तेमां जणावेल छ के आवां कष्टकाव्य रसनो विरोधी छे, कर्तानी अभिमानवृत्तिनं सूचन करे छे अथवा कविओमां आवी रचना करवानो एक गाडरियो प्रवाह चालतो आवे छे. प्राचीन कविओनी दृष्टिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002652
Book TitleRatna karavatarikadya sloka satarthi
Original Sutra AuthorJinmanikyavijay
AuthorBechardas Doshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1967
Total Pages148
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy