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________________ १४ छतां ग्रन्थकारतो विद्याव्यासंग अने परिश्रमपरायणता जोतां एमणे रचेला अन्य ग्रन्थोनी संभावना तो जरूर करी शकाय एम छे. ५ - शतार्थीनुं मूल अने शतार्थी नाम शतार्थी नाम मूळ श्लोकनी व्याख्यारूप वृत्तिनुं छे. सिद्धराज जयसिंहना समसमयी श्रीवादिदेवसूरिना शिष्य श्रीरत्नप्रभसूरिए रचेल रत्नाकरावतारिकामांसिद्धये वर्धमानः स्तात् ताम्रा यन्नखमण्डली | प्रत्यूहशलभप्लोषे दीप्रदीपाङ्कुरायते ॥ आ मंगलाचरणरूप प्रथम श्लोक छे, आ श्लोकमां भगवान वीरवर्धमाननी स्तुति करेल छे. ग्रन्थकारने रत्नाकरावतारिका नामनो ग्रन्थ रचतां विघ्नरूप पतंगो न नडे ए माटे वीर वर्धमानना नखोने दीवा साथै सरखावीने ए नखो विघ्नपतंगोनो विघात करे एवो आशय प्रस्तुत श्लोकनो अभिप्रेत छे. आ श्लोक प्रस्तुत शतार्थीना मूळरूप छे. शतार्थीकार श्रीजिनमाणिक्य उपाध्याये ए एक ज श्लोकना १११ - एकसो अने अगीयार अर्थ करी बताव्या छे, जेमां सो सो श्लोकनी संख्यानां पद्यो होय तेने शतक कहेवामां आवे छे-जेमके - भर्तृहरिशतक वगेरे. आ शतार्थीमां एकसो अने ऊपर अगीयार अर्थो करी बतावेला छे माटे आनुं शतार्थी नाम अर्थानुरूप छे, भगवान महावीरना वर्णनथी मांडीने छेवटे सिद्धहेम व्याकरणनुं वर्णन उक्त एक लोक द्वारा समजाववामां आवेल छे. जुदा पाना ऊपर प्रस्तुत ग्रंथमां बतावेला अर्थोनी अनुक्रमणिका आपेल छे ते उपरथी उक्त एक ज श्लोकमांथी केटला बधा अर्थी ग्रंथकारे काढी बताव्या छे तेनो ख्याल आवी शके एम छे. सिद्धमव्याकरणनुं वर्णन करती वखते ग्रंथकारे उत्थानिकामां जणावेल छे के ( " यस्य सम्यग् अवगमेन विद्वज्जनमनस्सु नानाविधानेकार्थ समुज्जृम्भणं भवति" इत्यादि) जेनो सारी रीते अभ्यास करवाथी विद्वान लोकोना मनमां उक्त एक ज श्लोकना नानाविध अर्थोनो ख्याल आपी शकायो छे ते व्याकरण - सिद्धहेम व्याकरण - नुं वर्णन करेल छे. ग्रंथकारना आ कथन द्वारा एम स्पष्ट थाय छे के तेओ उणादिप्रकरणसहित सिद्धहेम व्याकरणना सारा अभ्यासी हता. ६ - ग्रंथकारनुं बुद्धिकौशल तथा कल्पनाशक्ति एक ज प्रकारनी शब्दरचना द्वारा अनेक अर्थो करी बताववा ए प्रतिभाजन्य कल्पनाशक्तिनो चमत्कार छे एम कविलोकोनो अभिप्राय छे. एक राजानो दिवान प्रजापीडक हृतो, तेनी फरियाद राजा पासे एवी रीते करवानी हती के राजा फरि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002652
Book TitleRatna karavatarikadya sloka satarthi
Original Sutra AuthorJinmanikyavijay
AuthorBechardas Doshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1967
Total Pages148
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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