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________________ टीका ग्रन्थ १९ १. शेषसंग्रह नाममाला दीपिका कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचन्द्रसूरिप्रणीत शेषसंग्रह नाममाला पर श्रीवल्लभ ने 'वल्लभी ' नामक दीपिका की रचना वि. सं. १६५४ भाद्रपद कृष्ण ८ को, महाराजा रायसिंहजी के राज्यकाल में बीकानेर में की है । संवतोल्लेखवाली रचनाओं में श्रीवल्लभ की यह सर्वप्रथम रचना है । प्रत्येक शब्द की व्युत्पत्ति, लिङ्गनिर्वचन और शब्दों के प्रयोग सिद्ध हेमशब्दानुशासन, उणादिसूत्र, धातुपारायण, विश्वप्रकाश, शाश्वत, वैजयन्ती, माला, इन्दु, वनमाला, अमर, वाचस्पति, भविष्योत्तरपुराण, विष्णुपुराण, मार्कण्डेयपुराण, मत्स्यपुराण, सङ्गीतरत्नावली आदि ४६ ग्रन्थों के उद्धरण देते हुये दीपिकाकार ने सफलता के साथ स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है । दीपिका में २० शब्दों के राजस्थानी रूप भी प्राप्त हैं । ग्रन्थपरिमाण १९०० श्लोक है । दीपिका प्रकाशन योग्य है । इसकी प्रतियाँ विनयसागर संग्रह कोटा क्रमाङ्क ७७७ और महिमाभक्तिज्ञानभण्डार बीकानेर, ग्रन्थाङ्क १६३५ में प्राप्त है । जिनरत्नकोष के अनुसार इसकी एक प्रति विमलगच्छ उपाश्रय, अहमदाबाद में डाबडा नं. ४६ ग्रन्थाङ्क ३५ पर प्राप्त है । 1 २. हैमनाममालाशिलोव्छदीपिका प्रस्तुत दीपिका का परिचय आगे द्रष्टव्य है । ३. हैंमलिङ्गानुशासन दुर्गपदप्रबोध टीका श्री हेमचन्द्रचार्यप्रणीत लिङ्गानुशासन के स्वोपज्ञ विवरण पर 'दुर्गपदप्रबोध' नामक टीका की रचना श्रीवल्लभने आचार्य जिनचन्द्रसूरि एवं उनके पट्टधर श्रीजिनसिंहसूरि के धर्मराज्य में विचरण करते हुये वि. सं. १९६६१ कार्त्तिक शुक्ला सप्तमी को जोधपुर में नृपति सूरसिंह के विजयराज्य में ९० से अधिक ग्रन्थों के उद्धरण देते हुये २००० ग्रन्थ परिमाण में की । वृत्ति की रचना मूल लिङ्गानुशासन पर नहीं की गई है ! इसमें 'विद्यते या शुभा वृत्तिस्तस्य दुर्गार्थबोधद : ' [ प्र. प. १०] से स्पष्ट है कि आचार्य हैमचन्द्र का ही जो लिङ्गानुशासन पर स्वोपज्ञ विवरण है, उसमें जिन जिन स्थानों में दौर्गम्य या काठिन्य है उन ही स्थलों पर इसमें विवेचन किया गया है । इसिलिये इस व्याख्या का नाम श्रीवल्लभने 'दुर्गपदप्रबोध' रखा है । १ वर्षे शतानन्दमुखेन्द्रियेशपुत्राननाब्जप्रमिते [ १६५४ ] वरिष्ठे । अष्टम्यहे मासि नभस्यकृष्णे श्रेष्ठे पुरे विक्रमनामधेये ॥२१॥ २ श्रीमद्योपुरे द्रङ्गे सूरसिंहमहीपतौ । X X X भूमिषड्रतुङ्गीशसंख्ये १६६१ वर्षे सुखाधिके । मासि कार्तिक कान्ते सुदिने सप्तमी Jain Education International ॥५-६ ॥ For Private & Personal Use Only शेष संग्रह दीपिका प्रशस्ति प्रशस्तिः www.jainelibrary.org
SR No.002650
Book TitleHaimanamamalasiloncha
Original Sutra AuthorJindevsuri
AuthorVinaysagar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1974
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size7 MB
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