SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 220
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दसवाँ स्तबक १८९ वापीकूपतडागानि देवतायतनानि च । अन्नप्रदानमित्येतत् पूर्तमित्यभिधीयते ॥५८८॥ 'पूर्त' के अन्तर्गत आते हैं बावड़ी, कुआँ, तालाब खुदवाना, देवमन्दिर बनवाना तथा अन्न का दान करना । अतोऽपि शक्लं यद् वृत्तं निरीहस्य महात्मनः । ध्यानादि मोक्षफलदं श्रेयस्तदभिधीयते ॥५८९॥ इनसे भी (अर्थात् इष्ट तथा पूर्त से भी) अधिक शुक्ल कोटि का जो एक कामनाहीन महात्मा का ध्यान आदि रूप आचरण है तथा जो मोक्षप्राप्ति का कारण बनता है वह 'श्रेय' कहलाता है। वर्णाश्रमव्यवस्थाऽपि सर्वा तत्प्रभवैव हि । अतीन्द्रियार्थद्रष्टा तन्नास्ति किञ्चित् प्रयोजनम् ॥५९०॥ समूची वर्णाश्रमव्यवस्था का मूल भी वही वेद है और ऐसी दशा में ऐसे किसी व्यक्तिविशेष की कल्पना से कुछ लाभ नहीं जिसके संबंध में हमें मानना पड़े कि उसमें अतीन्द्रिय पदार्थों को देखने की क्षमता है। . अत्रापि ब्रुवते केचिदित्थं सर्वज्ञवादिनः । प्रमाणपञ्चकावृत्तिः कथं तत्रोपपद्यते ॥५९१॥ इस संबंध में भी सर्वज्ञ की सत्ता स्वीकार करनेवाले कुछ वादी (अपने प्रतिद्वन्द्वियों से) पूछते हैं कि सर्वज्ञ पाँच प्रमाणों का विषय नहीं यह बात कैसे सिद्ध हुई । सर्वार्थविषयं तच्चेत् प्रत्यक्षं तन्निषेधकृत् । अभावः कथमेतस्य न चेदत्राप्यदः समम् ॥५९२॥ यदि जगत् की सब वस्तुओं को अपना विषय बनानेवाले प्रत्यक्ष की सहायता से सर्वज्ञ का निषेध किया जायगा तो सर्वज्ञ का अभाव कहाँ सिद्ध हुआ (क्योंकि जगत् की सब वस्तुओं को अपना विषय बनानेवाला प्रत्यक्ष एक सर्वज्ञ का ही प्रत्यक्ष हो सकता है) ? और यदि जगत् की सब वस्तुओं को अपना विषय न बनानेवाले प्रत्यक्ष की सहायता से सर्वज्ञ का निषेध किया जायगा तो भी सर्वज्ञ का अभाव कहाँ सिद्ध हुआ (क्योंकि जिस प्रकार कुछ अन्य वस्तुएँ उक्त प्रत्यक्ष का विषय न होते हुए भी सत्ताशील हैं उसी प्रकार सर्वज्ञ भी हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002647
Book TitleSastravartasamucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorK K Dixit
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy