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________________ छठा स्तबक (१) 'निर्हेतुक विनाश' से क्षणिकवाद की सिद्धि नहीं यच्चोक्तं पूर्वमत्रैव क्षणिकत्वप्रसाधकम् ।। नाशहेतोरयोगादि तदिदानी परीक्ष्यते ॥४१४॥ क्षणिकवाद के समर्थन में यही पहले जो युक्तियाँ दी गई थी कि 'प्रत्येक वस्तु क्षणिक है, क्योंकि उसके नाश का कोई कारण संभव नहीं' आदि आदि, अब हम उनकी परीक्षा करते हैं । टिप्पणी-पिछली बार क्षणिकवाद का खंडन करते समय प्रारम्भ में ही अर्थात् कारिका २३९ में ही हरिभद्र ने कहा था कि इस वाद के समर्थन में चार युक्तियाँ उपस्थित की जाती हैं । इन्हीं चार युक्तियों का क्रमशः खण्डन प्राय: समूचे प्रस्तुत स्तबक में चलेगा; (स्तबक की ६३ कारिकाओं में से केवल अन्तिम १० में शून्यवाद का खंडन है)। हेतोः स्यान्नश्वरो भावोऽनश्वरो वा विकल्प्य यत्' । नाशहेतोरयोगित्वमुच्यते तन्न युक्तिमत् ॥४१५॥ जो यह तर्क दिया जाता है कि एक वस्तु यदि नश्वर रूप में अपने कारण से उत्पन्न हो तो उसके नाश का कोई कारण संभव नहीं और यदि वह अ-नश्वररूप में अपने कारण से उत्पन्न हो तो भी नहीं वह युक्तिसंगत नहीं । टिप्पणी—प्रस्तुत कारिका से क्षणिकवादी के इस तर्क का खंडन प्रारम्भ होता है कि प्रत्येक वस्तु क्षणिक है क्योंकि किसी वस्तु के नाश का कोई कारण संभव नहीं । क्षणिकवादी के तर्क का आधार उसकी यह समझ है कि जब किसी धर्म के संबन्ध में यह मान लिया जाए कि वह अमुक वस्तु का स्वभाव है तब यह प्रश्न उठाना कोई अर्थ नहीं रखता कि इस धर्म के इस वस्तु में पाए जाने का कारण क्या है; और क्योंकि क्षणिकवादी का मत है कि क्षणिकता १. ख का पाठ : विकल्पयत् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002647
Book TitleSastravartasamucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorK K Dixit
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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