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________________ १२७ अइ-मजण-कीला-जणिय-खेय-जुवईहिं सुरहि-बउल-वणे। लीलाए संचरिजइ कुसुमोच्चयणं कुणंतीहिं।।१४३५ ।। परिसेविय-भवणट्टाल-घम्म-घुम्माविएहिं मोरेहिं। 'निवसिजइ भवणुजाण-वावि-सीयल-सीलावट्टे ।।१४३६ ।। एरिस-कराल-काले सुदंसणा भावणाओ भाविंती। वइसाह-मास-सिय-पंचमीए जिण-धम्म-झाणेण।।१४३७।। पंच-परमेट्ठि-नवकार-तप्परा सिव-पयम्मि गय-चित्ता। मरिऊण सुयणु ! ईसाण-सुरवि(२०७ब)माणे समुप्पन्ना।।१४३८।। दिव्वच्छर-परियरिया मणिमय-वर-रयण-जडिय-'चमरेहिं। विजिज्जइ अमर-विलासिणीहिं थुव्वइ सुथोत्तेहिं।।१४३९ ।। अवि यजय जय हि सुरासुर-नमिय-चलणे, जयजय सिरिसंघह विघ हरणे!। जयणिय-कुल-दंसिय-जिण-सुबोहे! गंधव्व-जक्ख-संथुय-गुणोह।।१४४०।। जय सुर-विमाणे उप्पन्न-विमले! जयसुव्वय-जिण-पय-कमल-भसले!। जय जयहिए पयासिय-णिय-जसोहे !, भरुयच्छ-विहिय-जिण-भवण सोहे! ।।१४४१।। माणिक्क-रयण-भूसिय-सुगुत्ते, (२०८अ)जय सीलालंकिए वर-चरित्ते!। जय दिव्व-विमाणारूढ-देवि!,परिभमह सयलु तिहुयणुखणेवि॥१४४२॥ अन्नु वि रउद्दु हिंडंतु संवरु गय-वग्घ-सीह-संवर-पउरु। तउ णामे णट्ठा य भय देवि धीर, लंघंति वणंतर खणेण धीर ।।१४४३।। किलिकिलिकिलंत वेयालाग]णाउ, तउ णामेण 'चलहिं समाण वाउ। रयणायरे विहडिय जाणवत्त, नामेण तुम्ह ते तीरू पत्त।।१४४४।। कय-दोस-विसिढिलिय निवडि निगड, नामेणं तुज्झ छुट्टहिं अविहड। संगरे वि सत्तु-दुजय-सकवड, तउ नामेण तेवि जिणिति सुहड।१४४५। जे सावय(२०८ब)जिण-भवणई करेंति, जिणबिंबु, मुल्लग्गे णिवेसयंति। ते तुम्ह पसाएण गलिय विग्घ, दाणाई दिति ते जण कयग्घ।।१४४६।। १. परेसेसिय. २. निवसजूइ. ३. सीलावंट्टि. ४. वयसाह. ५. चम्मर. ६. विध. ७. चयहि. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002646
Book TitleSudansana Cariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaloni Joshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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